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पद्य ५-८ ]
अजीवाधिकार
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इस सर्वपदार्थस्थिता और सविश्वरूपा सत्ताको पंचास्तिकाय में एक बतलाया है। और इसलिए वह 'महासत्ता' है । पदार्थों के भेदकी दृष्टिसे महासत्ताकी अवान्तर-सत्ताएँ उसी प्रकार अनेकानेक तथा अनन्त होती हैं जिस प्रकार कि अखण्ड एक आकाश व्य अंशकल्पनाके द्वारा उसकी अनन्त अवान्तर-सत्ताएँ होती हैं । सत्ताका प्रतिपक्ष जिस प्रकार असत्ता है उसी प्रकार एकरूपताका प्रतिपक्ष नानारूपता, एक पदार्थ-स्थितिका प्रतिपक्ष नाना-पदार्थ स्थिति, ध्रौव्योत्पत्ति विनाशरूप त्रिलक्षणा सत्ताका प्रतिपक्ष त्रिलक्षणासा, एकका प्रतिपक्ष अनेक और अनन्तपर्यायका प्रतिपक्ष एकपर्याय है ।
'सम्पूर्ण पदार्थ समूह पर्यायकी अपेक्षासे नष्ट होता है तथा उत्पन्न होता है किन्तु अपेक्षासे न कोई पदार्थ नष्ट होता है और न उत्पन्न होता है ।'
द्रव्यका उत्पाद व्यय पर्यायकी अपेक्षासे
नश्यत्युत्पद्यते भावः पर्यायापेक्षयाखिलः । नरयत्युत्पद्यते कश्चिन्न द्रव्यापेक्षया पुनः || ७ |
व्याख्या - पिछले पद्य में जिस धौव्योत्पत्तिव्ययरूप त्रिलक्षणा सत्ताका उल्लेख है उसको यहाँ उत्पाद और व्ययकी दृष्टिसे स्पष्ट किया गया है - लिखा है कि यह उत्पाद और व्यय समस्त पदार्थों में पर्यायकी अपेक्षासे होता है, द्रव्यकी अपेक्षासे न कोई पदार्थ कभी उत्पन्न होता है और न कभी नाशको प्राप्त होता है । सब द्रव्य अनादि-निधन सद्भावरूप हैं । पंचास्तिकाय में द्रव्यका व्यय, उत्पाद और ध्रुवपना पर्यायें करती हैं, ऐसा लिखा है वहाँ पर्यायका आशय सहभावी और क्रमभावी दोनों प्रकारकी पर्यायोंसे है, सहभावी प 'गुण' कहते हैं जिससे द्रव्यमें ध्रुवपना होता है और क्रमभावी पर्यायोंको 'पर्याय' कहते हैं, जिनसे द्रव्यमें उत्पाद व्यय घटित होता है ।
'गुण- पर्यायों हो सकते हैं ।'
गुण- पर्यायके बिना द्रव्य और द्रव्यके बिना गुण-पर्याय नहीं " किंचित् संभवति द्रव्यं न विना गुण पर्ययैः । संभवन्ति विना द्रव्यं न गुणा न च पर्ययाः ॥८॥
बिना कोई द्रव्य नहीं हो सकता और न द्रव्यके बिना कोई गुण या पर्याय
arrer - जिस प्रकार दूध, दही, मक्खन और घृतादिसे रहित गोरस नहीं होता उसी प्रकार पर्यायोंसे रहित कोई द्रव्य नहीं होता । जिस प्रकार गोरससे शून्य दूध-दहीघृतादि नहीं होते उसी प्रकार द्रव्यसे शून्य कोई पर्याय नहीं होती । और जिस प्रकार एड्गलसे रहित स्पर्श-रस-गन्ध-वर्ण नहीं होते उसी प्रकार द्रव्यसे रहित गुण नहीं होते और जिस
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१. प्रतिपक्षमसत्ता स्यात्सत्तायास्तद्यथा तथा चान्यत् । नानारूपत्वं किल प्रतिपक्षं चैकरूपतायास्तु ॥२०॥ एकपदार्थस्थितिरिह सर्वपदार्थ स्थितं विपक्षत्वम् । श्रीव्योत्पादविनाशैस्त्रिलक्षणायास्त्रिलक्षणाभावः ॥२१॥ एकस्यास्तु विपक्षः सत्तायाः स्याददोह्यनेकत्वम् / स्यादप्यनन्त-पर्ययप्रतिपक्षस्त्वेकपर्ययत्वं स्यात् ॥ २२ ॥ - पञ्चाध्यायी । २. उप्पत्ती व विणासो दव्वस्स य णत्थि अस्थि सम्भावो । विगमुप्पादधुवत्तं करेंति तस्सेव पज्जाया ॥११॥ - पञ्चास्ति० । ३. पज्जयविजुदं दव्वं दनविजुत्ता य पज्जया णत्थि । दोहं अणण्णभूदं भावं समणा परूविति ॥ १२॥ दव्वेण विणा ण गुणा गुणेहि दव्वं विणा संभवदि । अन्वदिरित्तो भावो दव्व-गुणाणं हवदि तम्हा ॥ १३॥ - पञ्चास्ति० ।
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