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*विषयमार्गदर्शिका *
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३७६
पृष्ठ दीधिनिकारमतखण्डनम् दिनकरभट्ट-रामरुद्रभट्टमतसमीक्षणम् 'प्रगल्भमत में पृथ्वी आदि में सदा अन्धकारव्यवहार की आपत्ति वृन्यनियामकसम्बन्धेनाभावानङ्गीकार;
३७१ स्वाश्रयसंयोग को भेदप्रतियोगितावच्छेदकसम्बन्ध मानने में दोष . स्पाद्वादी सिद्धान्तलक्षणदीधिति-जागदीशीसंवादः
३७२ अन्धकार को अभावात्मक मानने में दोषपरम्परा ३७३ तमसो द्रव्यत्वसमर्थनम् अभावात्मक अन्धकार में तारतम्य की अनुपपत्ति उदयनाचार्यमतसमीक्षणम् कतिपय आलोकविशेष का अभाव तम नहीं हो सकता ३७५ अन्धतमसाऽवनमसस्वरूपमीमांसा अन्यतमसादि की निरवच्छिन्न ही प्रतीति होती है . स्याद्वादी अन्धकार में द्रव्यत्ववाधक का निराकरण अन्धकार को अभावात्मक मानने में दोष 'तमो न नष्टमिति प्रतीतेप्रमात्वापत्तिः | आलोकसंसगांभावसमूह भी अन्धकार नहीं है -स्वाद्वादी ३७९ न्यापसिद्धान्तदीपकार-शशधरमतसमालोचनम्
३८० अन्धकारावयत्र स्पर्शयुक्त ही है . स्पावादी पचिदनन्त्यावयवित्व अन्धकारसमवायिकारणतावच्छेदक नहीं हो सकता - स्याद्वादी मनन्त्यावयवित्वस्य कारणतानवच्छेदकत्वम् जातिविशेष का द्रव्यसमवायिकारणतावच्छेदक मानना उचित ३०१ 'नव्यमते इन्द्रियावयवेष्वनुभूतस्पशानभ्युपगमः ३८२ घटत्वादिना द्रव्यप्रतिवन्धकताधांतनम् द्रव्यसमवायिकारणतावच्छेदक जाति में सांकर्य का निराकरण
३८३ वर्धमान उपाध्याय के मत का निराकरण मुक्तावली-मयूखकारमतयोःसमालोचनम् मनोभिन्नमूतत्व द्रव्यसमवायिकारणतावच्छेदक है
. अमुक विद्वानों का मत एकाऽपरपदसूचिताऽस्वरसविभावनम् मूर्तत्व ही त्यसमवायिकारणतावच्छेदक है, . अपरमत ३८६ द्रयारम्भकतावच्छेदक भूतत्वजाति नहीं हो सकती ३८६ तमःसाधारणभूतत्वजातिकल्पनसम्मतिः
३/७ विश्वनाथ-महादेव-नृसिंहप्रभृतिमतप्रकाशनम्
३८.८ गरुधर्म भी शक्यतावच्छेदक हो सकता है . स्याद्वादी ३८८ एकत्वदृत्ति जातिविशेष द्रव्यारम्भकताबच्छेदक -स्वतन्त्रमत ३८०.
विषप
पृष्ट । स्वतन्त्रमत में सांकर्य दोष - अपर बिद्धान जन्यैकत्वलस्वरूपविचारः
३०.१ स्वतन्त्रमत का परिष्कार द्रव्यारम्भकतावदक एकत्वत्वविदोष को अनेक मानने में गौरव सायविचारः नच्यानां स्वतन्त्रमते सम्मतिः . जन्यभावमात्रस्य ससमवायिकारणत्वाऽनियमः स्वतन्त्रमत में लापत्र 'विभाज्यं' पदविचारः अन्धकारवादसंवादः वादिदेवरिवचनातिदेशः तमसो द्रव्यत्वस्थापनम् तमसः पृथिवीत्वापनिनिरासः प्राचीन जैनाचार्य का तमोभावत्वसाधक अनुमान अन्धकार पृथ्वी नहीं है
गुरुरवा हानिक संवादः स्वर्णे पृथिवीवाजीकारः पृथ्वीत्वरूप से नीलकारणता अनावश्यक
. नैयायिक एकदेशीय स्वभावविशेषस्य नीलनियामकत्वम् ज्यवहारविशेष से अन्धकार में आलोकाभावविभिन्नत्व की सिद्धि
४०२ परमत में 'अन्धकारे नान्धकारः' प्रतीति के भ्रमत्व का प्रसंग तर्कबलेनान्धकारस्य भावरूपतासमर्थनम् तमस्त्वस्य जातिवसमर्धनम् आलोकसत्ता आलोकाभावज्ञान की विरोधी है आलोकं रिना वीक्ष्यमाणस्य तमसो द्रव्यत्वम् वर्धमान उपाध्याय का मंतव्य तेजः परमाणु से अन्धकारारम्भस्वीकार . वर्धमानमतनिरास ४०५ कन्दलीकारमतखण्डनम् शिवादित्य-शेपानन्त-पक्षधरमियमतनिरासः रागद्वेषक्षय के बिना सत्यवचन असंभवित भवानीपती मानाभावप्रदर्शनम् ईश्वरखण्डन शरीरजन्यत्वस्योपाधित्त्वविचारः कार्य प्रति कर्तृत्वेन कारणत्वनिश्चपविचारः लाघव तर्क सहकार से ईश्वरसिद्धि . नैयायिक कार्यत्व षदबिध होने से नयायिकमत में लाघवतर्क नामुमकिन
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