Book Title: Syadvadarahasya Part 2
Author(s): Yashovijay Upadhyay, 
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 15
________________ * विषयमार्गदर्शिका * XV विषय २८२ नया ३१३ ३१५ ३१६ पृन अभेदविवक्षा से नानाधर्मावच्छिन्नबोधोपपत्ति एकदोष में पदान्तरस्मरण आवश्यक २८७ एकशेषस्थले पदान्तरस्मरणागीकारः २८८ ! 'सकृदचरित...' न्यायनिष्कर्षः 'सकृदुचरित.' न्याय का निष्कर्ष पुष्पदन्तपद से सूर्यचन्द्र का युगपत् बोध संमत अमरकोशवचनसंवादः लयुस्पावादरहस्यसंवादः धर्मनिष्ट एकत्व का निर्वचन शकुन्तलानाटकसंवादः २९२ | सकृदुचरित...' न्याय अप्रामाणिक . नव्यन यायिक २९.२ 'प्रजयति' वाक्यविचारः दाक्ति-लक्षणा से पुगपद्अनेकार्थबोध मान्य - नयनैयायिक २९.३ | 'गङ्गायां घोष' इतिशाब्दबोधविमर्शः शक्यतावच्छेदक में भी पदाक्ति अबाधित . नव्यनैयायिक २९४ शक्यतावच्छेदकेऽपि शक्तिसमर्थनम् २०५ ! "सकृदुच्चरित...' न्याय प्रामाणिक है . स्याद्वादी प्रकरणादीनां न शक्तिसहकारिता तात्पर्यग्रह का माक्तिसहकारी मानने में लाघव . स्थाद्वादी२९६ अष्टसहनीकारमतनिकन्दनम् | 'सर्व सांधवाचकाः' प्रवाद का स्याद्वाद में स्वीकार शस्तरवश्यकल्पनीयत्वम् लक्षणा का अवकाश . स्याद्रादी २९८ स्याद्वादरत्नाकरसंवादः २९.९ तमोवादातरम्भः प्रदीपादि भी द्रव्यार्थिक नय से नित्य प्रमाणनयतत्त्वालोकालकारसूत्रोपयोगः अन्धकार अभावरूप नहीं है . स्याद्वादी पत्रलक्षणाऽऽविष्कारः उद्धृतरूपव्याप्य उद्भुतस्पर्श की अन्धकार में आपत्ति ३०२ उद्भूतरूप उद्भूतस्पर्श का ब्याप्य नहीं है, . स्पाद्वादी ३०४ प्रभापामुद्भूतरूपस्योद्भूतस्पर्शव्याप्तिभङ्गः उद्भूत नीलरूप भी उद्भूतस्पर्श का व्याप्य नहीं - स्याद्वादी ३.५ नीलत्रसरेणी व्यभिचाराऽऽवेदनम् नील त्रसरणु में व्यभिचारापत्ति के उद्धार का प्रयत्न उद्भूतस्पर्शस्यानुभूतस्पर्शजन्यत्त्वे रिप्रतिपत्तिः त्रसरेणु में उद्भुत स्पर्श नामुमकिन - स्याद्रादी योगसिद्धान्त-तदेकदेशिमतभेदविद्योतनम् ३०८ मुक्तावली-मञ्जूषा-प्रभाकरमतनिराकरणम् महत्त्वविशेष के अभाव से त्रसरेणुस्पर्शप्रत्यक्षविरह अनुपपन्न - स्याद्वादी विषय एकत्वे जातिविशेपकल्पने साइय॑म् स्याद्वादी मत में सांकर्य - नेपापिफ एकदशीय ३१० विनिगमनाविरहेण सरापाकरणम् नैयायिक मत में चिनिगमकाभाव दोष उत्कटनीलस्योन्कटस्पर्शव्याप्त्यापादनम् वायुचाक्षुषापत्ति का निराकरण - नापिक की ओर से ३१२ आपादितव्यामिप्रत्याख्यानम् विषयस्य तत्तद्व्यक्तित्वेनाऽकारणत्वसमर्थनम् ३१४ व्यक्तिगतरूप से विषय प्रत्यक्ष का कारण नहीं है • स्याद्वादी त्रुटिस्पर्शाऽस्पार्शनविचारः स्पर्शेन्द्रिय की स्वसंयुक्तत्वात्रवत्समबाप से कारणता . नैयायिकदेशीय त्वाचयत्त्वस्य विशेषणत्वोपलक्षणत्वकल्पनमयुक्तम् ३१६ त्वाप्रत्यक्ष में समवाय की विशेषणता या उपलक्षणता नामुमकिन . स्याद्वादी विशेषणोपलक्षणस्वरूपमीमांसा ३२७ त्रुटिस्पस्यानुद्भूतत्वसमर्थनम् उपलक्षणविधया त्वाप्रत्यक्ष का सम्बन्धकुक्षि में प्रवेश गौरवग्रस्त - स्याद्वादी व्यासज्पवृत्तिगुणाऽस्पार्शननिर्वाहविचारः ३१० आश्रयस्पार्शनाभाव गुणादिस्पार्शन में प्रतिबन्धक . नैयायिकदेशीयमत त्वाचाभावस्य प्रतिबन्धकताविचारः उद्भुतस्पर्शाभावस्य प्रतिबन्धकता उद्भुतस्पशाभाव ही गुणादिस्पार्शन का प्रतिबन्धक __ . स्याद्वादी ३२१ त्रुटिस्पर्शस्यानुद्भूतत्वम् उद्भूतनीलरूप उद्भूतस्पर्श का व्याप्य नहीं है -स्याद्वादी ३२२ अर्थसमाजसिद्धस्य कार्यतानवच्छेदकता प्राचीनजनाचार्यमतप्रकाशनम् अन्धकार सीतस्पर्शवाला है . प्राचीन जैनाचार्य तमस्युद्भूतस्पर्शस्थापनम् । अन्धकार आलोकाभावारमक नहीं है - स्याद्वादी महादेवभ-नृसिंहशास्त्रिमतसमीक्षणम् योग्यताविशेषापेक्षाऽऽविष्कारः योग्यताविशेष चाक्षुष का कारण - स्याद्वादी अंशांशिनोः कथश्चिनेदसमर्थनम् आलोकसंयोगस्य चाक्षुपजनकत्दासम्भवविमर्शः ३२१ द्रव्यचाक्षुषमात्र का योग्यताविशेष कारण है - स्याद्वादी ३२१. ज्ञप्ती परस्पराश्रयप्रकाशनम् २९.८ U ANAN ३२२ ३२३ ३२४ MNNANA ३२७

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