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XIV मध्यमस्याद्वादरहस्ये खण्डः २
*विषयमार्गदर्शिका*
पृष्ट
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२४० २४९
विषय
पृष्ठ गौरवस्य दोपत्वत्रिमर्शः प्रतियोगिता-प्रतियोगितावच्छेदकत्वादि अतिरिक्त है -पूर्वपक्षी २५६ व्यधिकरणधर्मावच्छिन्नाभावासिद्धिः | भवदेव के मत का निरूपण व्यधिकरणदीधितिसंवादद्योतनम् भवदेव के मत की समालोचना
२४८ नव्यमतनिराकरणम् निरबच्छिन्न प्रतीति विरुद्ध नहीं हो सकती 'घटलेन पटो नास्ती'तिधीप्रतिबन्धकाचविमर्शः व्यधिकरणधर्मावच्छिनाभावामतिरेकाऽऽशश अतिरिक्तप्रतियोगितादिविचारः
२५२ प्रतियोगिताअधिकरण धर्म में अवच्छेदकत्व की कल्पना में गौरव है . पूर्वपक्षी अस्तित्व-नास्तित्वस्वरूपविचारः | सप्तभंगी प्रामाणिक है उत्तरपक्ष सप्तभङ्गीतरङ्गिणीसंवादः परद्रत्र्यादि चतुष्टय में अवच्छेदकता मुमकिन है-स्याद्वादी २५४ वैशेषिकसूत्रोपस्कार-भाष्यसंबादावेदनम्
२५५ उत्पाद व्यय-धाव्यैश्यात्मक घंटास्तित्व है . दिगम्बर २५५ प्रवचनसारवृत्तिद्वयसंवादप्रकाशनम्
२५६ 'घटी नास्ति' यहाँ घटाभाव अस्तित्व का आश्रय है
- पूर्वपक्ष 'भूतले घटो नास्ती'तिप्रतीतिविचारः द्वितीय भंग के स्वीकार में निराकांक्ष शाब्दबोधानपपत्ति २५७ मुक्तावलीकारमतप्रतिक्षेपः द्वितीय भंग में घट ही विशेष्य है, न कि घटाभाव - उत्तरपक्ष
२५८ व्युत्पत्तिवादसंवादः
२५० परमत में 'घटी नास्ति' इस प्रयोग के प्रामाण्य की आपत्ति सुप्तिहोः नवनश्यनियममीमांसा सङ्गल्यान्वयविचारविशेषः
२६१ सावच्छिन्न नास्तित्व और निरवन्छिन अस्तित्व में विरोध
विषय शुद्धाशुद्धत्वविचारः अनवच्छिन्नेऽवच्छिन्नत्वप्रतीतिसमर्थनम्
२६६ रत्नाकरावतारिकाविरोधपरिहारः प्लान्तिा र परनास्तित्व में अभेद नहीं है २६७ कुटशब्दविचारः अष्टसहस्रीकारमतनिकंदन विद्यानन्द-विमलदासमतकर्तनम् पररूपनास्तित्व काल्पनिक नहीं है . स्याद्वादी जिनेन्द्रवचने प्रामाण्यसप्तभङ्गीविषारः सप्तभंगी की प्रवृत्ति जिनवचन में नहीं हो सकती . एकान्तवादी
२७० एवकारार्थविचारः सप्तभंगी शिववचन में भी अव्याहत . अनेकान्तवादी २७१ भासर्वज्ञप्रतिभाभङ्गः विदोषणसंगत एवकार का अर्थ - पूर्वपक्ष
२७२ विदोषणसंगत एवकार का द्वितीय अर्थ . नैयायिक खण्डशः शक्तिविचारः विशेषणसंगत पत्रकार का अयोगव्यवच्छेद अर्थ नहीं है - नव्यनैयापिक
२७६ नग्यनैयायिक मतानुसार 'घटः सन् एव' वाक्य का अर्थ २५४ 'घटः सत्रेवे'तिवचनविचार:
२७५ 'द्रव्यं सदेव' इस प्रतीति की अनुपपत्ति . आक्षेप २७५ परौदासीन्येन सत्तमात्रबोधनम् प्रतियोगितानवच्छेदकल का अर्थ . नव्यनैयायिक अवच्छेदकत्वनिरुक्तिसंवादः
२७७ शास्त्रचार्तासमुच्चयसंवादः 'प्रमेयं वाच्यं एव' स्थल का निरूपण
२७. विस्तरत एनकारार्थमीमांसा
२७२, आकाङ्क्षानुसारिबोधसमर्थनम् सप्तभड्गी में आधिक्यदोषशंकानिरास वक्तव्यत्वसप्तभङ्गीद्योतनम् वक्तव्यत्वसप्तभंगी के द्वितीय-चतुर्थ भंग में अभेदनिरास २८१ सप्तभङ्गीद्वैविध्यम् सत्त्वसप्तभंगी में वक्तव्यत्व धर्म अतिरिक्त नहीं कालावष्टकविचारः अभेदवृत्तिप्राधान्य -तदुपचारमीमांसा 'सकृदुचरित'...न्यापपरीक्षा सकृदुचरित्त न्याय में दोयोद्भावन सिद्धहेमलयुन्याससंवादः द्वितीय 'सकृत' पद का अर्थ काशिकावृतिसंवादः
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नहीं है
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अवच्छेदकभेदापेक्षाप्रयोजनम् |एक वाक्य में तात्पर्यभेद से प्रामाण्य अप्रामाण्य
. स्याद्वादी 'तात्पर्यभेदेन योग्यायोग्यत्वसमर्थनम् नत्रान्वय अन्योगितावच्छेदकावच्छिन्न में होता है
- अन्यमत i.दिगविभावने शङ्कराचार्यमतनिराकरणम्
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