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विषय
पांचवी फारिका का सामान्य अर्थ
| अदर्शनी और जिनेन्द्र से प्रदर्शित वस्तु का नियानस्य
स्वरूप अलग-अलग है
अप्पपदीक्षितवत्प्रतिक्षेपः
प्रत्येक पदार्थ प्रत्येक धर्म की अपेक्षा
सहधर्मात्मक है स्पाद्वादी नित्यत्वानित्यत्वयोरेकत्र समावेशः
शंका : द्रव्यत्व- पर्यायत्व क्रमशः नित्यत्व और अनित्यत्व का अवच्छेदक नहीं हो सकता स्वस्थ स्वापच्छेदकत्वविचार:
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| ध्वंसाप्रतियोगितात्मक नित्यत्व का अवच्छेदक द्रव्य हो सकता है
समाधान
शुद्ध धर्म से अबच्छेय विशिष्ट स्प स्याद्वादी अर्धे क्रमाध्यारोपप्रदर्शनम्
वट क्रमिक अर्पणा से कथंचित् नित्यानित्य
इच्छा भी प्रत्यक्षकारण हो सकती है स्याद्वादी प्रत्यक्षविशेषस्वेच्छानियम्यत्यकथनम्
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विषयमार्गदर्शिका
विषय
घट कथंचित् नित्य और कथंचित् अवक्तव्य है स्याद्वादी
अन्तिम तीन धर्म का समावेश पूर्व धर्म में नहीं हो सकता स्याद्वादी सप्तभङ्ग्यां विचारविशेष:
उपवेवसाइयेयुपायसाम्
नित्यानित्यत्व आदि धर्म जातिविशेषात्मक है
• विशेषणविशेष्यभाव में विनिगमक न होने पर भी परिणाम अभिव ही है
स्वाद्वादी
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एकदेशमित
सप्तभंगीस्वरूपविचार
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ܕ ܐ ܕ
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| कथञ्चिवक्तव्यत्वसमर्थनम्
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घट युगपत् अर्पणाइव से कथंचित् अवक्तव्य स्याद्वादी २२४
| शाङ्करभाष्यनिराकरणम्
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उपदेश सहकार से अवतव्यत्व भी शाब्दबोधयोग्य है
स्वाभादी
अवक्तव्यात्वेग परिणाम ही नित्यान का उपकार है
• स्याद्वादी
अष्टभङ्गीप्रसङ्गापाकरणम्
अवक्तव्यत्व की भाँति वक्तव्यत्व स्वतंत्र आँठवा
धर्म नहीं है स्वाद्वादी
वक्तव्यत्वसप्तभङ्गीस्थापनम्
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२२२ स्याद्वादी २२२
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सप्तभङ्गीस्वरूपप्रकाशनम्
सप्तभङ्ग्या न्यूनत्वेऽप्रामाण्यम्
एक भी भंग से शून्य सप्तभंगी प्रमाण नहीं है अर्पणाविशेषस्य सहकारित्वोकि:
संकेत भी शाब्दबोध में सहकारी है।
मुक्तावलिकारमतप्रतिक्षेप:
न्यायभूपणकारप्रभृतिमतखण्डनम्
सप्तभंगी में एवकार और स्पात्कार का प्रयोजन परी तत्वसङ्ग्रहसमालोचना
उत्पादादिसिद्ध्यनुसारेण सप्तभङ्गीभावना
सप्तभंगी अप्रामाणिक है दीर्य पूर्वपक्ष व्यधिकरणधर्मस्याऽपच्छेदकत्वविचारः प्रतियोगितावच्छेदकत्यविचारः
व्यधिकरणधर्माविवि अभाव प्रामाणिक होने से द्वितीयादि भंग प्रामाणिक है स्पाज्ञादी
'घटत्वेन पटो नास्ति' यहाँ पटत्व प्रतियोगितावच्छेदक है - अवान्तर शंका
अभावांचे संसर्गविचार:
तृतीयतपदीपस्थापित धर्म प्रतियोगितावच्छेदक होता ही हे स्वाद्वादी
अवच्छेदकत्वनिरुक्तिदीधितिसंवादः अभावविशेषणतावच्छेदकत्व और अभावप्रतियोगितावच्छेदकत्व की ज्ञापक सामग्री एक है पूर्वपक्ष विप्रतिपत्तिप्रकाशनम्
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घटत्वादि घटादिभेदाभावरूप होने से अतिरिक्त प्रतियोगिता की कल्पना अनावश्यक है स्वाद्वादी प्रतियोगितादरनतिरिक्तत्वविमर्शः
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अपच्छेदकत्वांशेऽभ्रमत्वाऽऽशङ्कापराकरणम्
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घटत्वेन पटो नास्ति इस प्रतीति में वैशिष्ट्यांश में अप्रमात्मकत्व और अवच्छेदकत्वांश प्रमात्व की शंका व्यधिकरणधर्मावच्छिन्न प्रतियोगिता अप्रामाणिक पूर्वपक्षी २४२ व्यधिकरणसम्बन्धावच्छिन्नप्रतियोगिताक अभाव ही व्यधिकरणधर्मावच्छिन्नप्रतियोगिताका भाव है स्याद्वादी
द्वितीय भंग में अतिरिक्त प्रतियोगिता की कल्पना का गौरव अनिराकार्य पूर्वपक्ष अतिरिक्तप्रतियोगिताविचार:
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पादिवृत्ति प्रतियोगिता का अवच्छेदक धर्मविधया घटत्वादि नहीं हो सकता पूर्वपक्षी
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प्रतियोगितादि प्रतियोगी आदि स्वरूप है शंका
Bold Type जयस्ता के विषय के सूचक है Normal Type रमणीया हिन्दी व्याख्या के शापक है।
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