________________
अडिग मन के धनी
श्रा कुमारपाल देसाई के निरन्तर उँचे जाते हुए ग्राफ को देखकर दुष्यंतकुमार की यह पंक्तियाँ याद आ रही हैं : कैसे आकाश में सूराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो । __चार-चार दशकों से मूल्यनिष्ठ पत्रकारिता, साहित्य एवं सार्वजनिक क्षेत्रों में सक्रिय रहनेवाले डॉ. कुमारपाल देसाई अपने कार्यों के द्वारा जाने जाते हैं, भले ही उन्हें अपने पिता की साहित्यिक विरासत मिली हो । विरासत भी वही संभाल सकता है जिसके पास दृष्टि हो । कहने की आवश्यकता नहीं है कि कुमारपाल देसाई ने उसमें वृद्धि ही की है। ‘जयभिख्खु के पुत्र के रूप में कुमारपाल देसाई को पहचाननेवाली पीढ़ी वृद्ध हो चुकी है । इस समय 'ईंट और इमारत' एवं 'झाकल बन्यू मोती' के लेखक कुमारपाल देसाई गुजरात के सार्वजनिक क्षेत्र में विशिष्ट पहचान रखते हैं। यह पहचान लोकप्रिय स्तंभलेखक के रूप में ही नहीं, वे कुशल व्यवस्थापक, मूल्यनिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार, विद्यार्थीप्रिय अध्यापक एवं जैनदर्शन के मर्मज्ञ के रूप में देश-विदेश में प्रसिद्ध हैं।
डॉ. कुमारपाल देसाई से मेरा पहला परिचय करीब बाईस वर्ष पहले हुआ था, जब वे लींबडी (सौराष्ट्र) के कॉलेज में ‘साहित्य अने समाज' पर व्याख्यान देने आए थे। मैं वहाँ हिन्दी का अध्यापक था। एक श्रोता के रूप में व्याख्यान सुन रहा था। प्रश्नोत्तरी के समय विद्यार्थियोंने साहित्य पर नहीं,
आलोक गुप्त
372