Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-1]
[27 शरीर को अपना मानते हैं, इसलिए जिन जड़ या चेतन पदार्थों की ओर से शारीरिक अनुकूलता मिलती है – ऐसा जीव माने, उनके प्रति राग होगा ही और जिस जड़ या चेतन की ओर से प्रतिकूलता मिलती है - ऐसा वह माने, उसके प्रति उसे द्वेष होगा ही। जीव की यह मान्यता महान भूलयुक्त है, इसलिए उसे आकुलता बनी रहती है।
जीव की इस महान भूल को शास्त्र में मिथ्यादर्शन कहा जाता है। जहाँ मिथ्यादर्शन हो, वहाँ ज्ञान और चारित्र भी मिथ्या होते हैं; इसलिए मिथ्यादर्शनरूप महान भूल को महापाप भी कहा जाता है। यह मिथ्यादर्शन महाभूल है, और सर्वदुःखों का महा बलवान मूलकारण यही है - ऐसा लक्ष्य जीवों को न होने से, वह लक्ष्य कराने और उस भूल को दूर करके वे अविनाशी सुख की ओर अग्रसर हों, इस हेतु से आचार्य भगवन्तों ने सर्वप्रथम सम्यग्दर्शन प्रगट करने का उपदेश बारम्बार दिया है । जीव को सच्चे सुख की आवश्यकता हो तो उसे प्रथम सम्यग्दर्शन प्रगट करना ही चाहिए।
संसारीरूपी समुद्र से रत्नत्रयरूपी जहाज को पार करने के लिये सम्यग्दर्शन चतुर केवट-नाविक हैं। जो जीव, सम्यग्दर्शन प्रगट करता है, वह अनन्त सुख को प्राप्त होता है और जिस जीव को सम्यग्दर्शन नहीं है, वह पुण्य करे तो भी अनन्त दुःखों को प्राप्त होता है; इसलिए यथार्थ सुख प्राप्त करने के लिये जीवों को तत्त्व का यथार्थ स्वरूप समझकर सम्यग्दर्शन प्रगट करना चाहिए।
वन्दन हो सम्यक्त्व और सम्यक्त्वधारी सन्तों को.....
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