Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन गुण है या पर्याय ? ) सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र की एकता मोक्षमार्ग है। इनमें से सम्यग्दर्शन भी मोक्षमार्गरूप है। मोक्षमार्ग, पर्याय है; गुण नहीं। यदि मोक्षमार्ग, गुण हो तो वह समस्त जीवों में सदा रहना चाहिए। गुण का न तो कभी नाश होता और न कभी उत्पत्ति ही होती है। मोक्षमार्ग पर्याय है, इसलिए उसकी उत्पत्ति होती है और मोक्षदशा के प्रगट होने पर, उस मोक्षमार्ग का व्यय हो जाता है। बहुत से लोग, सम्यग्दर्शन को त्रैकालिक गुण मानते हैं; परन्तु सम्यग्दर्शन तो आत्मा के त्रैकालिक श्रद्धागुण की निर्मलपर्याय है, गुण नहीं है।
गण की परिभाषा यह है कि – 'जो द्रव्य के सम्पूर्ण भाग में और उसकी सभी अवस्थाओं में व्याप्त रहता है, वह गुण है।' यदि सम्यग्दर्शन गुण हो तो वह आत्मा की समस्त अवस्थाओं में रहना चाहिए; परन्तु यह तो स्पष्ट है कि सम्यग्दर्शन, आत्मा की मिथ्यात्वदशा में नहीं रहता; इससे सिद्ध है कि सम्यग्दर्शन, गुण नहीं; किन्तु पर्याय है। जो गुण होता है, वह त्रिकाल होता है और जो पर्याय होती है, वह नयी प्रगट होती है। गुण नया प्रगट नहीं होता, किन्तु पर्याय प्रगट होती है। सम्यग्दर्शन नया प्रगट होता है, इसलिए वह गुण नहीं, किन्तु पर्याय है। पर्याय का लक्षण उत्पादव्यय है और गुण का लक्षण ध्रौव्य है।
यदि सम्यग्दर्शन स्वयं गुण हो तो उस गुण की पर्याय क्या है ? 'श्रद्धा' नामक गुण है और सम्यग्दर्शन (सम्यक्श्रद्धा) तथा
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