Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
68]
[सम्यग्दर्शन : भाग-1 करके स्वर्ग में जाए तो उस जीव के लिए वह काल, स्वर्ग का निमित्त कहलाता है। यदि दूसरा जीव उसी समय पाप करके नरक में जाए तो उसके लिये उसी काल को नरक का निमित्त कहा जाता है और कोई जीव उसी समय स्वरूप समझकर, स्थिरता करके, मोक्ष प्राप्त करके तो उस जीव के लिये वही काल, मोक्ष का निमित्त कहलाता है। निमित्त तो हमेशा विद्यमान हैं, किन्तु जब स्वयं अपने पुरुषार्थ के द्वारा अरहन्त के स्वरूप का और अपने आत्मा का निर्णय करता है, तब क्षायिक सम्यक्त्व अवश्य प्रगट होता है और मोह का नाश होता है।
जिसने अरहन्त भगवान के द्रव्य-गुण-पर्याय के स्वरूप को जाना है, वह जीव अल्प काल में मुक्ति का पात्र हुआ है। अरहन्त भगवान, आत्मा हैं; उनमें अनन्त गुण हैं; उनकी केवल-ज्ञानादि पर्यायें हैं - उनके निर्णय में आत्मा के अनन्त गुण और पूर्ण पर्याय की सामर्थ्य का निर्णय आ जाता है। उस निर्णय के बल से अल्प काल में केवलज्ञान प्राप्त हो जाता है, इसमें सन्देह को कहीं स्थान नहीं है। यहाँ इस गाथा में क्षायिक सम्यक्त्व की ध्वनि है। ___ 'जो अरहन्त को द्रव्यरूप में, गुणरूप में और पर्यायरूप में जानता है वह' – इस कथन में जाननेवाले के ज्ञान की महत्ता समाविष्ट है। अरहन्त को जाननेवाले ज्ञान में मोहक्षय का उपाय समाविष्ट कर दिया है। जिस ज्ञान ने अरहन्त भगवान के द्रव्यगुण-पर्याय को अपने निर्णय में समावेश किया है, उस ज्ञान ने परमार्थतः कर्म का और विकार का अपने में अभाव स्वीकार किया है, अर्थात् द्रव्य से गुण से और पर्याय से परिपूर्णता का सद्भाव निर्णय में प्राप्त किया है।
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.