Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-1 स्वरूप का द्रव्य, गुण, पर्याय के द्वारा यथार्थ निर्णय करने पर, आत्मा की प्रतीति होती है और यही मोह का क्षय का उपाय है।
-इसके बादअब आगे द्रव्य, गुण, पर्याय का स्वरूप बताया जाएगा और यह बताया जाएगा कि द्रव्य, गुण, पर्याय को किस प्रकार जानने से मोहक्षय होता है।
(जो जीव, अरहन्त को द्रव्य, गुण, पर्यायरूप से जानता है, वह अपने आत्मा को जानता है और उसका मोह अवश्य क्षय को प्राप्त होता है। अरहन्त का स्वरूप सर्व प्रकार शुद्ध है; इसलिए शुद्ध आत्मस्वरूप के प्रतिबिम्ब के समान श्री अरहन्त का आत्मा है। अरहन्त जैसा ही इस आत्मा का शुद्धस्वभाव स्थापित करके, उसे जानने की बात कही है। यहाँ मात्र अरहन्त की ही बात नहीं है, किन्तु अपने आत्मा की प्रतीति करके उसे जानना है। क्योंकि अरहन्त में और इस आत्मा में निश्चय से कोई अन्तर नहीं है। जो जीव अपने ज्ञान में अरहन्त का निर्णय करता है, उस जीव के भाव में अरहन्त भगवान साक्षात् विराजमान रहते हैं, उसे अरहन्त का विरह नहीं होता। इस प्रकार अपने ज्ञान में अरहन्त की यथार्थ प्रतीति करने पर, अपने आत्मा की प्रतीति होती है और उसका मोह अवश्य क्षय को प्राप्त होता है। यह पहिले कहे गए कथन का सार है। अब, द्रव्य, गुण, पर्याय का स्वरूप विशेषरूप से बताते हैं, उसे जानने के बाद अन्तरङ्ग में किस प्रकार की क्रिया करने से मोह-क्षय को प्राप्त होता है, यह बताते हैं।)
जो जीव अपने पुरुषार्थ के द्वारा आत्मा को जानता है, उस
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