Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 343
________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [327 उसी प्रकार भेदविज्ञानी महात्मा, चैतन्यस्वरूप के प्रतिघातक ऐसे कर्मों के समूह को क्षणमात्र में नष्ट कर डालते हैं । (- तत्त्वज्ञानतरंगिणी - ८-१२ ) -भेदविज्ञान मोक्ष का कारण संवर तथा निर्जरा साक्षात् अपने आत्मा के ज्ञान से होते हैं और आत्मज्ञान, भेदज्ञान से होता है; इसलिए मोक्षार्थी को वह भेदज्ञान की भावना करने योग्य है । ( - तत्त्वज्ञानतरंगिणी -८-१४) सम्यग्दर्शन स्वकीय शुद्ध चिद्रूप में रुचि, वह निश्चय से सम्यग्दर्शन है - ऐसा तत्त्वज्ञानियों ने कहा है। यह सम्यग्दर्शन, कर्मोंरूपी ईंधन सुलगाने के लिये अग्नि- समान है । ( - तत्त्वज्ञानतरंगिणी - १२ - ८ ) सम्यक्त्व का प्रभाव (पशु और मानव ) नरत्वेऽपि पशुयन्ते मिथ्यात्वग्रस्तचेतः स । पशुत्वेऽपि नरायन्ते सम्यक्त्वव्यक्तचेतनाः॥ ( - सागारधर्मामृत - गाथा ४ ) जिसका चित्त, मिथ्यात्व से व्याप्त है - ऐसा मिथ्यादृष्टि जीव, मनुष्यत्व होने पर भी पशुसमान अविवेकी आचरण करता होने से पशुसमान है और सम्यक्त्व द्वारा जिसकी चैतन्य - सम्पत्ति व्यक्त हो गयी है, ऐसा सम्यग्दृष्टि जीव, पशुत्व होने पर भी मनुष्यसमान विवेकी आचरण करता होने से मनुष्य है। भावार्थ – तत्त्वों के विपरीत श्रद्धानरूप मिथ्यात्वसहित जीव भले ही बाह्य-शरीर से मनुष्य हो, तथापि अन्तर में वह हित Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

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