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सम्यग्दर्शन : भाग-1]
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उसी प्रकार भेदविज्ञानी महात्मा, चैतन्यस्वरूप के प्रतिघातक ऐसे कर्मों के समूह को क्षणमात्र में नष्ट कर डालते हैं ।
(- तत्त्वज्ञानतरंगिणी - ८-१२ ) -भेदविज्ञान
मोक्ष का कारण
संवर तथा निर्जरा साक्षात् अपने आत्मा के ज्ञान से होते हैं और आत्मज्ञान, भेदज्ञान से होता है; इसलिए मोक्षार्थी को वह भेदज्ञान की भावना करने योग्य है ।
( - तत्त्वज्ञानतरंगिणी -८-१४)
सम्यग्दर्शन
स्वकीय शुद्ध चिद्रूप में रुचि, वह निश्चय से सम्यग्दर्शन है - ऐसा तत्त्वज्ञानियों ने कहा है। यह सम्यग्दर्शन, कर्मोंरूपी ईंधन सुलगाने के लिये अग्नि- समान है । ( - तत्त्वज्ञानतरंगिणी - १२ - ८ )
सम्यक्त्व का प्रभाव
(पशु और मानव )
नरत्वेऽपि पशुयन्ते मिथ्यात्वग्रस्तचेतः स । पशुत्वेऽपि नरायन्ते सम्यक्त्वव्यक्तचेतनाः॥
( - सागारधर्मामृत - गाथा ४ ) जिसका चित्त, मिथ्यात्व से व्याप्त है - ऐसा मिथ्यादृष्टि जीव, मनुष्यत्व होने पर भी पशुसमान अविवेकी आचरण करता होने से पशुसमान है और सम्यक्त्व द्वारा जिसकी चैतन्य - सम्पत्ति व्यक्त हो गयी है, ऐसा सम्यग्दृष्टि जीव, पशुत्व होने पर भी मनुष्यसमान विवेकी आचरण करता होने से मनुष्य है।
भावार्थ – तत्त्वों के विपरीत श्रद्धानरूप मिथ्यात्वसहित जीव भले ही बाह्य-शरीर से मनुष्य हो, तथापि अन्तर में वह हित
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