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________________ www.vitragvani.com 328] [सम्यग्दर्शन : भाग-1 -अहित के विवेक से रहित होने के कारण भाव से तो पशु है और जिसे तत्त्वार्थश्रद्धानरूप सम्यक्तव द्वारा चैतन्य की स्वानुभूति सम्पत्ति प्रगट हो गयी है, ऐसा जीव भले ही बाह्य-शरीर से पशु हो, तथापि अन्तर में हित-अहित का विचार करने में चतुर होने से मनुष्यसमान है। देखो, सम्यक्त्व के सद्भाव से पशु भी मानव कहलाते हैं और उसके अभाव से मानव भी पशु कहलाते हैं - ऐसा सम्यक्त्व का प्रभाव है। यद्यपि समस्त जीवों की अपेक्षा से मनुष्य सबसे अधिक विचारवान माना जाता है, परन्तु उसका ज्ञान भी यदि मिथ्यात्वसहित हो तो वह हित-अहित का विचार नहीं कर सकता; इसलिए मिथ्यात्व के प्रभाव से वह मनुष्य भी विवेकरहित पशुसमान हो जाता है, तब फिर दूसरे प्राणियो की तो बात ही क्या की जाये? पशु मुख्यतः तो हित-अहित के विवेकरहित ही होते हैं, परन्तु कदाचित् किसी पशु का आत्मा भी यदि सम्यक्त्वसहित हो तो उसका ज्ञान, हेय-उपादेय तत्त्वों का ज्ञाता हो जाता है, तब फिर जो सम्यक्त्वसहित मनुष्य हो तो उसकी महिमा की तो बात ही क्या की जाये? - ऐसा महिमावन्त सम्यग्दर्शन आत्मा का स्वभाव है। परम पुरुषपद, वह मोक्ष है। ऐसे परम पुरुषपद की प्राप्ति के उपाय में जिसका आत्मा विचर रहा है, वही वास्तव में पुरुष है। सम्यग्दृष्टि पशु का आत्मा, परम पुरुषपदरुप मोक्ष के मार्ग में स्थित होने से वह पुरुष है और मिथ्यादृष्टि मानव का आत्मा परम पुरुषपद के मार्ग में स्थित न होने से वह पुरुष नहीं, किन्तु पशु है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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