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[ सम्यग्दर्शन : भाग-1
ही हो तो भी वह प्रशंसनीय है, परन्तु मिथ्यादर्शनरूपी विष से दूषित हुआ ज्ञान या चारित्र प्रशंसनीय नहीं है।
( - ज्ञानार्णव अ. ६, गाथा - ५५ )
भवक्लेश हलका करने की औषधि
सूत्रज्ञ आचार्यदेवों ने कहा है कि अति अल्प यम-नियमतपादि हों, तथापि यदि वे सम्यग्दर्शनसहित हों तो भव- -समुद्र के क्लेश का भार हलका करने के लिये वह औषधि है
(- ज्ञानार्णव अ. ६, गाथा - ५६ )
सम्यग्दृष्टि मुक्त है
श्री आचार्यदेव कहते हैं - जिसे दर्शन की विशुद्धि हो गयी है, वह पवित्र आत्मा मुक्त ही है - ऐसा हम मानते हैं; क्योंकि दर्शनशुद्धि को ही मोक्ष का मुख्य कारण कहा गया है।
- ज्ञानार्णव अ. ६, गाथा - ५७ )
सम्यग्दर्शन के बिना मुक्ति नहीं है
जो ज्ञान और चारित्र के पालन में प्रसिद्ध हुए हैं, ऐसे जीव भी इस जगत में सम्यग्दर्शन के बिना मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते । ( - ज्ञानार्णव अ. ६, गाथा - ५८ )
भेदविज्ञान से ही सिद्धि
यह अपना शुद्ध चैतन्यस्वभाव, भेदज्ञान के बिना कभी कहीं कोई भी तपस्वी या शास्तज्ञ प्राप्त नहीं कर सके हैं । भेदज्ञान से ही शुद्ध चैतन्यस्वभाव की प्राप्ति होती है ।
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( - तत्त्वज्ञानतरंगिणी - ८-११)
भेदविज्ञान से कर्म - क्षय
जिस प्रकार अग्नि, घास के ढ़ेर को क्षणमात्र में सुलगा देती है;
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