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________________ www.vitragvani.com 326] [ सम्यग्दर्शन : भाग-1 ही हो तो भी वह प्रशंसनीय है, परन्तु मिथ्यादर्शनरूपी विष से दूषित हुआ ज्ञान या चारित्र प्रशंसनीय नहीं है। ( - ज्ञानार्णव अ. ६, गाथा - ५५ ) भवक्लेश हलका करने की औषधि सूत्रज्ञ आचार्यदेवों ने कहा है कि अति अल्प यम-नियमतपादि हों, तथापि यदि वे सम्यग्दर्शनसहित हों तो भव- -समुद्र के क्लेश का भार हलका करने के लिये वह औषधि है (- ज्ञानार्णव अ. ६, गाथा - ५६ ) सम्यग्दृष्टि मुक्त है श्री आचार्यदेव कहते हैं - जिसे दर्शन की विशुद्धि हो गयी है, वह पवित्र आत्मा मुक्त ही है - ऐसा हम मानते हैं; क्योंकि दर्शनशुद्धि को ही मोक्ष का मुख्य कारण कहा गया है। - ज्ञानार्णव अ. ६, गाथा - ५७ ) सम्यग्दर्शन के बिना मुक्ति नहीं है जो ज्ञान और चारित्र के पालन में प्रसिद्ध हुए हैं, ऐसे जीव भी इस जगत में सम्यग्दर्शन के बिना मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते । ( - ज्ञानार्णव अ. ६, गाथा - ५८ ) भेदविज्ञान से ही सिद्धि यह अपना शुद्ध चैतन्यस्वभाव, भेदज्ञान के बिना कभी कहीं कोई भी तपस्वी या शास्तज्ञ प्राप्त नहीं कर सके हैं । भेदज्ञान से ही शुद्ध चैतन्यस्वभाव की प्राप्ति होती है । I ( - तत्त्वज्ञानतरंगिणी - ८-११) भेदविज्ञान से कर्म - क्षय जिस प्रकार अग्नि, घास के ढ़ेर को क्षणमात्र में सुलगा देती है; Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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