Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 341
________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [ 325 सम्यग्दर्शनरहित जीव का स्वर्ग में रहना भी शोभा नहीं देता, क्योंकि आत्मस्वभाव बिना स्वर्ग में भी वह दु:खी है । जहाँ आत्मज्ञान है, वहीं सच्चा सुख है। ( - सारसमुच्चय - ३९) निर्वाण और परिभ्रमण जो जीव, सम्यग्दर्शन से युक्त है, उस जीव को निश्चित ही निर्वाण का संगम होता है और मिथ्यादृष्टि जीव को सदैव संसार में परिभ्रमण होता है। ( - सारसमुच्चय - ४१) कौन भवदुःख का नाश करता है ? सम्यक्त्वभाव की शुद्धि द्वारा जो जीव, विषयों के सङ्ग से रहित है और कषायों का विजयी है, वही जीव, भवभय के दुःखों को नष्ट कर देता है। ( - सारसमुच्चय - ५० ) तीन लोक का सार केवल एक आत्मा ही सम्यग्दर्शन है, इसके अतिरिक्त अन्य सब व्यवहार है; इसलिये हे योगी ! एक आत्मा ही ध्यान करनेयोग्य है, वही तीन लोक में सारभूत है । ( - परमात्मप्रकाश - १-१६) सम्यक्त्व की दुर्लभता काल अनादि है, जीव भी अनादि है और भव- समुद्र भी अनादि है, परन्तु अनादि काल से भव-समुद्र में गोते खाते हुए, इस जीव ने दो वस्तुएँ कभी प्राप्त नहीं की - एक तो श्री जिनवरस्वामी और दूसरा सम्यक्त्व। - परमात्मप्रकाश - २ - १४३ ) ज्ञान - चारित्र की शोभा सम्यक्त्व से ही है विशेष ज्ञान या चारित्र न हो, तथापि यदि अकेला सम्यग्दर्शन Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

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