Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
सम्यग्दर्शन : भाग-1]
[297
अवशेष रहा ज्ञाता जीव :__छह द्रव्यों में यह एक ही जीवद्रव्य ज्ञानशक्तिवाला है। जीव में ज्ञानगुण है और ज्ञान का फल सुख है; अत: जीव में सुखगुण है। यदि यथार्थ ज्ञान करे तो सुख हो, परन्तु जीव अपने ज्ञानस्वभाव को नहीं पहचानता और ज्ञान से भिन्न अन्य वस्तुओं में सुख की कल्पना करता है, यह उसके ज्ञान की भूल है और उस भूल के कारण ही जीव के दुःख है। अज्ञान, जीव की अशुद्धपर्याय है। जीव की अशुद्धपर्याय दुःखरूप है, इसलिए उस दशा को दूर करके सच्चे ज्ञान के द्वारा शुद्धदशा प्रगट करने का उपाय समझाया जाता है।
सभी जीव सुख चाहते हैं और सुख, जीव की शुद्धदशा में ही है; इसलिए जिन छह द्रव्यों को जाना है, उनमें से जीव के अतिरिक्त पाँच द्रव्यों के गुण-पर्याय के साथ जीव का कोई प्रयोजन नहीं है, किन्तु अपने गुण-पर्याय के साथ ही प्रयोजन है।
प्रत्येक जीव अपने लिए सुख चाहता है, अर्थात् अशुद्धता को दूर करना चाहता है। जो मात्र शास्त्रों को पढ़कर अपने को ज्ञानी मानता है, वह ज्ञानी नहीं है, किन्तु परद्रव्यों से भिन्न अपने आत्मा को पुण्य-पाप की क्षणिक अशुद्ध वृत्तियों से भिन्नरूप में यथार्थतया जानता है, वह ज्ञानी है। कोई परवस्तु, आत्मा को हानि-लाभ नहीं पहुँचाती। अपनी अवस्था में अपने ज्ञान की भूल से ही दु:खी था; अपने स्वभाव की समझ के द्वारा उस भूल को स्वयं दूर करे तो दुःख दूर होकर सुख होता है। जो यथार्थ समझ के द्वारा भूल को दूर करता है, वह सम्यग्दृष्टि ज्ञानी, सुखी धर्मात्मा है। जो यथार्थ समझ के बाद उस समझ के बल से आंशिक राग को दूर करके
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.