Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 312
________________ www.vitragvani.com 296] [सम्यग्दर्शन : भाग-1 द्रव्य के अपना आकार होता है। प्रत्येक द्रव्य अपने-अपने निज आकार में ही रहता है। ___ सिद्धदशा के होने पर एक जीव दूसरे जीव में मिल नहीं जाता, किन्तु प्रत्येक जीव अपने प्रदेशाकार स्वतन्त्ररूप में स्थिर रहता है। ये छह सामान्यगुण मुख्य हैं। इनके अतिरिक्त अन्य सामान्यगुण भी हैं, इस प्रकार गुणों के द्वारा द्रव्य का स्वरूप अधिक स्पष्टता से जाना जाता है। प्रयोजनभूत : इस प्रकार छह द्रव्य के स्वरूप का अनेक प्रकार वर्णन किया है। इन छह द्रव्यों में प्रतिसमय परिणमन होता रहता है। जिसे पर्याय (अवस्था, हालत, Condition) कहते हैं। धर्म, अधर्म, आकाश और काल-इन चार द्रव्यों की पर्याय तो सदा शुद्ध ही है। शेष जीव और पुद्गलद्रव्यों में शुद्धपर्याय होती है और अशुद्धपर्याय भी हो सकती है। जीव और पुद्गलद्रव्य में से पुद्गलद्रव्य में ज्ञान नहीं है, उसमें ज्ञातृत्व नहीं है और इसलिए उसमें ज्ञान की विपरीततारूप भूल नहीं है। इसलिए पुदगल के सुख अथवा दुःख नहीं होता। सच्चे ज्ञान से सुख और विपरीत ज्ञान से दुःख होता है, परन्तु पुद्गलद्रव्य में ज्ञानगुण ही नहीं है; इसलिए उसके सुख-दुःख नहीं होता। उसमें सुखगुण ही नहीं है। ऐसा होने से पुद्गलद्रव्य के अशुद्धदशा हो या शुद्धदशा हो, दोनों समान हैं। शरीर, पुद्गलद्रव्य की अवस्था है; इसलिए शरीर में सुख-दुःख नहीं होते। शरीर निरोगी हो अथवा रोगी हो, उसके साथ सुख-दुःख का सम्बन्ध नहीं है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

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