Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-1 परिणाम नहीं होते - इस प्रकार अंश की स्वतन्त्रता स्वीकार करके त्रिकाल स्वभाव में उस अंश का निषेध करना ही निश्चय श्रद्धा/सम्यग्दर्शन है।
कषाय की मन्दता वह उस समय की पर्याय का स्वतन्त्र कार्य है, तथापि जो जीव, देव-शास्त्र-गुरु से लाभ और कर्म से हानि मानते हैं, उनके व्यवहार श्रद्धा भी नहीं है, तब वे अंश का निषेध करके त्रिकाली स्वभाव की श्रद्धा क्यों करेंगे? कषाय की मन्दता तो अभव्य भी अनन्त बार करते हैं। पर्याय स्वतन्त्र है - ऐसी अंश की स्वतन्त्रता को स्वीकार किये बिना मिथ्यात्व का रस भी यथार्थरूप से मन्द नहीं होता।
प्रश्न – कषाय की मन्दता या मिथ्यात्व-रस की मन्दता -इन दोनों में से कोई भी मोक्षमार्गरूप नहीं है, तो उनमें क्या अन्तर
है?
उत्तर – यहाँ दोनों के पुरुषार्थ का अन्तर बतलाना है; किन्तु पर्याय की स्वतन्त्रता स्वीकार करने से कहीं मोक्षमार्ग नहीं हो जाता। पर्याय की स्वतन्त्रता भी अनन्त बार मानी, तथापि सम्यग्दर्शन नहीं हुआ, किन्तु यहाँ व्यवहार से उन दोनों में जो अन्तर है, वह बतलाना है।
कषाय की मन्दता करने से कहीं व्यवहार श्रद्धा नहीं होती, क्योंकि व्यवहार श्रद्धा का पुरुषार्थ उससे भिन्न है। यद्यपि है तो दोनों पुण्य और दोनों मिथ्यात्व; किन्तु मिथ्यात्व के रस की अपेक्षा से उनमें अन्तर है।
जिस प्रकार कुगुरु-कुदेव-कुशास्त्र की श्रद्धा और आत्मज्ञान
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