Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-1 त्याग कर, और निर्मल आत्मा का ध्यान कर, जिससे तुझे शिवसुख की प्राप्ति हो।
निज रूप के जो अज्ञ जन, करे पुण्य बस पुण्य। तदपि भ्रमत संसार में, शिव सुख से हो शून्य॥
(-योगसार-१५) हे जीव! यदि तू आत्मा को न जाने और मात्र पुण्य-पुण्य ही करता रहेगा तो भी तू सिद्धिसुख को प्राप्त नहीं कर सकेगा; किन्तु पुनः-पुनः संसार में परिभ्रमण करेगा।
निज दर्शन ही श्रेष्ठ है, अन्य न किञ्चित् मान। हे योगी! शिव हेतु अब, निश्चय तू यह जान॥
(-योगसार-१६) हे योगी! एक परम आत्मदर्शन ही मोक्ष का कारण है, इसके अतिरिक्त अन्य कोई भी मोक्ष का कारण नहीं है - ऐसा तू निश्चय से समझ।
गृहकार्य करते हुए, हेयाहेय का ज्ञान। ध्यावे सदा जिनेश पद, शीघ्र लहे निर्वाण॥
(-योगसार-१८) गृह-व्यवहार में रहने पर भी, जो भव्य जीव, हेय-उपादेय को समझता है और जिन भगवान को निरन्तर ध्याता है, वह शीघ्र निर्वाण को प्राप्त होता है।
जिनवर अरु शुद्धातम में, भेद न किञ्चित् जान। मोक्षार्थ हे योगिजन! निश्चय से तू यह मान॥
(-योगसार-२०)
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