Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 315
________________ www.vitragvani.com [299 सम्यग्दर्शन : भाग-1] जिज्ञासुओं का कर्तव्य : उपरोक्त तत्त्वस्वरूप को प्रथम जानकर गृहीतमिथ्यात्व का (व्यवहार मिथ्यापन का) पाप दूर करे और अभूतपूर्व निश्चय आत्मज्ञान से आत्मा के लक्ष्य से ज्ञान करके यह निर्णय करे तो अगृहीतमिथ्यात्व का सर्वोपरि पाप दूर हो जाये, यही अपूर्व सम्यग्दर्शनरूपी धर्म है; इसलिए जिज्ञासु जीवों को प्रथम भूमिका से ही यथार्थ समझ के द्वारा गृहीत और अगृहीतमिथ्यात्व को नाश करके का निरन्तर प्रयत्न करना चाहिए और उसका नाश सच्चे ज्ञान के द्वारा ही होता है, इसलिए निरन्तर सच्चे ज्ञान का अभ्यास करना चाहिए। COC७ कौन प्रशंसनीय है? "इस जगत में जो आत्मा निर्मल सम्यग्दर्शन में अपनी बुद्धि निश्चल रखता है वह, कदाचित् पूर्व पापकर्म के उदय से दु:खी भी हो और अकेला भी हो, तथापि वास्तव में प्रशंसनीय है; और इससे विपरीत, जो जीव अत्यन्त आनन्द के देनेवाले – ऐसे सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय से बाह्य है और मिथ्यामार्ग में स्थित है – ऐसे मिथ्यादृष्टि मनुष्य भले ही अनेक हों और वर्तमान में शुभकर्म के उदय से प्रसन्न हों, तथापि वे प्रशंसनीय नहीं हैं; इसलिए भव्यजीवों को सम्यग्दर्शन धारण करने का निरन्तर प्रयत्न करना चाहिए।" -पद्मनन्दि-देशव्रतोद्योतन अ० 2 Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

Loading...

Page Navigation
1 ... 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344