Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 327
________________ www.vitragvani.com निश्चयश्रद्धा-ज्ञान कैसे प्रगट हो?) अनेक जीव, दयारूप परिणामों वाले होते हैं, तथापि वे शास्त्रों का सच्चा अर्थ नहीं समझ सकते; इसलिए दयारूप परिणाम, शास्त्रों के समझने में कारण नहीं हैं। इसी प्रकार मौन धारण करें, सत्य बोलें और ब्रह्मचर्य आदि के परिणाम करें, फिर भी शास्त्र का आशय नहीं समझ सकते, इसलिए यहाँ ऐसा बताया है कि शुद्धचैतन्य -स्वभाव का आश्रय ही सम्यग्ज्ञान का उपाय है; कोई भी मन्द -कषायरूप परिणाम, सम्यग्ज्ञान का उपाय नहीं है। इस समय शुभपरिणाम करने से पश्चात् सम्यग्ज्ञान का उपाय हो जायेगा, यह मान्यता मिथ्या है। अनन्त बार शुभपरिणाम करके स्वर्ग में जानेवाले जीव भी शास्त्रों के तात्पर्य को नहीं समझ पाये तथा वर्तमान में भी ऐसे अनेक जीव दिखायी देते हैं जोकि वर्षों से शुभपरिणाम, मन्दकषाय तथा व्रत-प्रतिमा आदि करने पर भी शास्त्र के सच्चे अर्थ को नहीं जानते, अर्थात् उनके ज्ञान की व्यवहारशुद्धि भी नहीं है; अभी ज्ञान की व्यवहारशुद्धि के बिना जो चारित्र की व्यवहार शुद्धि करना चाहते हैं, वे जीव, ज्ञान के पुरुषार्थ को नहीं समझते। ___ ऐसे ही दयादि के भावरूप मन्द-कषाय से भी व्यवहारशुद्धि भी नहीं होती और ज्ञान की व्यवहारशुद्धि से आत्मज्ञान नहीं होता। आत्मा के आश्रय से ही सम्यग्ज्ञान होता है, यही धर्म है । इस धर्म की प्रतीति के बिना तथा वास्तविक व्यवहारज्ञान न होने से जब Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

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