Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-1 वस्तु का अस्तित्व आँखों से निश्चित नहीं होता, किन्तु ज्ञान से ही निश्चित होता है और इस प्रकार जाननेवाला ज्ञान भी प्रत्यक्ष-ज्ञान के समान ही प्रमाणभूत है।
जो वस्तु, वर्तमान अवस्था को धारण कर रही है, वह वस्तु त्रिकाल स्थायी अवश्य होती है; यदि त्रैकालिकता न हो तो उसकी वर्तमान अवस्था भी न हो सके। उसकी जो वर्तमान अवस्था ज्ञात होती है, वह वस्तु का त्रिकाल अस्तित्व प्रगट करती है कि हम पहले कपास, सूत इत्यादि अवस्थारूप में थे और भविष्य में धूल, अन्न इत्यादि अवस्थारूप रहेंगे।
इस प्रकार वर्तमान अवस्था, वस्तु के त्रिकाल अस्तित्व को घोषित करती है। अब, यहाँ यह विचार करना चाहिए कि दूध बदलकर दही बन जाता है, दही बदलकर मक्खन या घी के रूप में हो जाता है और घी बदलकर विष्टा में रूपान्तरित हो जाता है; उसमें मूल स्थिर रहनेवाली कौन सी वस्तु है, जिसके आधार से यह रूपान्तर हुआ करते हैं? विचार करने पर मालूम होगा कि नित्यस्थायी मूलवस्तु परमाणु हैं और परमाणु वस्तु के रूप में नित्य स्थिर रहकर उसकी अवस्था में रूपान्तर होते रहते हैं। इस प्रकार सिद्ध हुआ कि दृष्टिगोचर न हो सकने पर भी परमाणु वस्तु है। __ जैसे परमाणु का अस्तित्व ज्ञान के द्वारा निश्चित किया जा सकता है; उसी प्रकार आत्मा का अस्तित्व भी ज्ञान के द्वारा निश्चित किया जा सकता है। यदि आत्मा न हो तो यह सब कौन जानेगा? आत्मा नहीं है' - ऐसी शङ्का भी आत्मा के अतिरिक्त दूसरा कौन कर सकता है ? आत्मा है और 'है' के लिये वह त्रिकाल स्थायी है।
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