Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-1 इससे जीव और अजीव नामक दो प्रकार के पदार्थों का अस्तित्व निश्चित हुआ। उनमें से जीवद्रव्य के सम्बन्ध में अभी तक बहुत कुछ कहा जा चुका है। अजीव पदार्थ पाँच प्रकार के हैं - पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल । इस प्रकार छह द्रव्यों (जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल) में से मात्र जीव ही ज्ञानवान है, शेष पाँच ज्ञानरहित हैं। वे पाँचों पदार्थ जीव से विरुद्ध लक्षणवाले हैं; इसलिए उन्हें 'अजीव' अथवा जड़ कहा गया है।
छह द्रव्यों का विशेष सिद्धि जीवद्रव्य और पुद्गलद्रव्य :
जो स्थूल पदार्थ हमें दिखायी देते हैं, उन शरीर, पुस्तक, पत्थर, लकड़ी इत्यादि में ज्ञान नहीं है, अर्थात् वे अजीव हैं । उन पदार्थों को तो अज्ञानी जीव भी देखता है। उन पदार्थों में न्यूनधिकता होती रहती है, अर्थात् वे एकत्रित होते हैं और पृथक हो जाते हैं। ऐसे दृष्टिगोचर होनेवाले पदार्थों को पुद्गल कहते हैं। रूप, रस, गन्ध और स्पर्श पुद्गलद्रव्य के गुण हैं; इसलिए पुद्गल द्रव्य काला-सफेद, खट्टा-मीठा, सुगन्धित-दुर्गन्धित और हलका-भारी इत्यादि रूप से जाना जाता है। ये सब पुद्गल के ही गुण हैं । जीव, काला-गोरा, या सुगन्धित-दुर्गन्धित नहीं होता; जीव तो ज्ञानवान है। शब्द टकराता है अथवा बोला जाता है, यह सब पुद्गल की ही पर्याय है। जीव उन पुद्गलों से भिन्न है। लोक में अज्ञानीबेहोश मनुष्य से कहा जाता है कि - तेरा चेतन कहाँ उड़ गया है ? अर्थात् यह शरीर तो अजीव है जोकि जानता नहीं है, किन्तु जाननेवाला ज्ञान कहाँ चला गया? अर्थात् जीव
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