Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
सम्यग्दर्शन : भाग-1]
[281
आत्मा जन्म से मरण तक ही नहीं होता, किन्तु वह त्रिकाल होता है, जन्म और मरण तो शरीर के संयोग और वियोग की अपेक्षा से हैं। यदि शरीर की अपेक्षा को अलग कर दिया जाये तो जन्म-मरण रहित आत्मा सतत्-त्रिकाल है। वास्तव में आत्मा का न तो जन्म होता है और न मरण होता है। आत्मा सदा शाश्वत अविनाशी वस्तु है। आत्मावस्तु ज्ञानस्वरूप है, वह निज से ही है; वह शरीर इत्यादि अन्य पदार्थों से स्थिर नहीं है, अर्थात् आत्मा पराधीन नहीं है, आत्मा कर्माधीन नहीं है; किन्तु स्वाधीन है। जीव और अजीव :___ 'आत्मा कैसा है' यह प्रश्न उपस्थित होते ही इतना तो निश्चित हो ही गया कि आत्मा से विरुद्ध जाति के अन्य पदार्थ भी हैं और उनसे इस आत्मा का अस्तित्व भिन्न है; अर्थात् आत्मा है, आत्मा के अतिरिक्त परवस्तु है और उस परवस्तु से आत्मा का स्वरूप भिन्न है; इसलिए यह भी निश्चित हो गया कि आत्मा परवस्तु का कुछ नहीं कर सकता। इतना यथार्थ समझ लेने पर ही जीव और अजीव के अस्तित्व का निश्चय करना कहलाता है।
जीव स्वयं ज्ञातास्वरूप है – ऐसा निश्चय करने पर यह भी स्वतः निश्चय हो गया कि जीव के अतिरिक्त अन्य पदार्थ ज्ञातास्वरूप नहीं हैं। जीव ज्ञाता है -चेतनस्वरूप है, इस कथन का कारण यह है कि ज्ञातृत्व से रहित अचेतन अजीव पदार्थ भी हैं। उन पदार्थों से जीव की भिन्नता को पहचानने के लिए ज्ञातृत्व के चिह्न से (चेतनता के द्वारा) जीव की पहिचान करायी है। जीव के अतिरिक्त अन्य किसी भी पदार्थ में ज्ञातृत्व नहीं है।
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.