Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-1]
[283 कहाँ गया? इससे जीव और पुद्गल इन दो द्रव्यों की सिद्धि हो गयी। धर्मद्रव्य :
इस धर्मद्रव्य को जीव अव्यक्तरूप से स्वीकार करता है। छहों द्रव्यों का अस्तित्व स्वीकार किये बिना कोई भी व्यवहार नहीं चल सकता।आने-जाने, रहने इत्यादि में छहों द्रव्यों का अस्तित्व सिद्ध हो जाता है। राजकोट से सोनगढ़ आये' इस कथन में धर्मद्रव्य सिद्ध हो जाता है। राजकोट से सोनगढ़ आने का अर्थ यह है कि जीव और शरीर के परमाणुओं की गति हुई -एक क्षेत्र से दूसरा क्षेत्र बदला। अब इस क्षेत्र बदलने के कार्य में निमित्त द्रव्य किसे कहोगे? क्योंकि यह नियम सुनिश्चित है कि प्रत्येक कार्य में उपादान और निमित्तकारण अवश्य होता है। अब यहाँ यह विचार करना है कि जीव पुद्गलों के राजकोट से सोनगढ़ आने में कौनसा द्रव्य निमित्त है? पहले तो जीव और पुदगल दोनों में उपादान है। निमित्त उपादान से भिन्न होता है; इसलिए जीव अथवा पुद्गल उस क्षेत्रान्तर का निमित्त नहीं हो सकता। कालद्रव्य परिणमन में निमित्त होता है, अर्थात् वह पर्याय के बदलने में निमित्त है; इसलिए कालद्रव्य क्षेत्रान्तर का निमित्त नहीं है। आकाश, द्रव्य समस्त द्रव्यों का रहने के लिये स्थान देता है।
जब हम राजकोट में थे, तब जीव और पुद्गल के लिये आकाश निमित्त था, और सोनगढ़ में भी वही निमित्त है, इसलिये आकाश को भी क्षेत्रान्तर का निमित्त नहीं कहा जा सकता। इससे यह सुनिश्चित है कि क्षेत्रान्तररूप कार्य का निमित्त इन चार द्रव्यों के अतिरिक्त कोई अन्य द्रव्य है। गति करने में कोई एक द्रव्य
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