Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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(जिज्ञासु को धर्म कैसे करना चाहिए?)
जो जीव, जिज्ञासु होकर स्वभाव को समझने के लिए आया है, वह सुख प्राप्त करने और दुःख का अभाव करने के लिए आया है। सुख अपना स्वभाव है और वर्तमान में जो दुःख है, वह क्षणिक है; इसलिए वह दूर हो सकता है। जो सत् को समझने के लिए आया है, उसने इतना तो स्वीकार कर ही लिया है कि जीव, वर्तमान दुःखरूप अवस्था को दूर करके स्वयं सुखरूप अवस्था को प्रगट कर सकता है। आत्मा को अपने भाव में पुरुषार्थ करके विकाररहित स्वरूप का निर्णय करना चाहिए। वर्तमान में विकार होने पर भी विकाररहित स्वभाव की श्रद्धा की जा सकती है; अर्थात्, यह निश्चय हो सकता है कि यह विकार और दुःख, मेरा स्वरूप नहीं है। पात्र जीव का लक्षण :
जिज्ञासु जीवों को स्वरूप का निर्णय करने के लिए शास्त्रों ने पहली ही ज्ञानक्रिया बतायी है । स्वरूप का निर्णय करने के लिए अन्य कोई दान, पूजा, भक्ति, व्रत, तपादि करने को नहीं कहा है परन्तु श्रुतज्ञान से आत्मा का निर्णय करना ही कहा है। सर्व प्रथम कुगुरु, कुदेव, कुशास्त्र का आदर और उस ओर का आकर्षण तो दूर हो ही जाना चाहिए तथा विषयादि परवस्तु में जो सुखबुद्धि है, वह भी दूर हो जाना चाहिए। सब ओर से रुचि दूर होकर अपनी ओर रुचि होनी चाहिए। देव, गुरु और शास्त्र को यथार्थ रीति से
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