Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[ सम्यग्दर्शन : भाग-1
और सम्यग्ज्ञान का तीव्र विरोध करने से निगोददशा होती है, जहाँ स्थूल ज्ञानवाले अन्य जीव, उस जीव के अस्तित्व तक को स्वीकार नहीं करते। कभी निगोददशा में कषाय की मन्दता करके जीव वहाँ से मनुष्य हुआ और कदाचित् धर्म की जिज्ञासा से सच्चे देवगुरु-शास्त्र को पहिचानकर व्यवहार मिथ्यात्व को (गृहीत मिथ्यात्व को) दूर किया, किन्तु आत्मस्वरूप को नहीं पहिचाना; इसलिए जीव अनन्ता -नन्तकाल से चारों गतियों में दुःखी होता रहता है । यदि सच्चे-देव -गुरु-शास्त्र को पहिचानकर अपने आत्मस्वरूप का सूक्ष्मदृष्टि से विचार करे और स्वयं ही सत् स्वरूप का निर्णय करे, तभी जीव की महाभयंकर भूल दूर हो, सुख प्राप्त हो और जन्म-मरण का अन्त हो ।
महा मिथ्यात्व कब दूर हो ? : -
जिसे आत्मस्वरूप के यथार्थ परिज्ञान के द्वारा अनादिकालीन महाभूल को दूर करने का उपाय करना हो, उसे इसके लिये आत्मज्ञानी सत् पुरुष से शुद्धात्मा का सीधा स्वरूप सुनना चाहिए और उसका स्वयं अभ्यास करना चाहिए। ध्यान रहे कि मात्र सुनते रहने से अगृहीत मिथ्यात्व दूर नहीं होता; किन्तु अपने स्वभाव के साथ मिलाकर स्वयं निर्णय करना चाहिए ।
जीव स्वयं अनन्त बार तीर्थङ्कर भगवान के समवसरण में जाकर उनका उपदेश सुन आया है, किन्तु स्वाश्रय से स्वभाव की श्रद्धा किये बिना उसे धर्म प्राप्त नहीं हुआ। 'आत्मा ज्ञानस्वरूप है; किन्तु वह पर का कुछ भी कर नहीं सकता, पुण्य से आत्मा का धर्म नहीं होता,' ऐसी निश्चय की सच्ची बात सुनकर, उसे स्वीकार करने की जगह जीव इन्कार करता है कि 'यह बात अभी अपने
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