Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-1 धर्ममूढ़ता – (लोकमूढ़ता) हिंसाभाव में धर्म मानना, वह धर्म-मूढ़ता है। वास्तव में जैसे पाप में आत्मा की हिंसा है, वैसे पुण्य में भी आत्मा की हिंसा होती है; इसलिए पुण्य में धर्म मानना भी धर्ममूढ़ता है तथा धर्म मानकर नदी इत्यादि में स्नान करना, पशु -हिंसा में धर्म मानना इत्यादि सब धर्मसम्बन्धी भूल है। इसे लोकमूढ़ता कहते हैं। गृहीत मिथ्यात्व तो छोड़ा, किन्तु.... :
यह तीन महा भूलें जीव के लिए बहुत बड़ी हानि की कारण हैं। स्वयं जिस कुल में जन्म लिया है, उस कुल में माने जानेवाले देव, गुरु, धर्म कदाचित् सच्चे हों और उन्हें स्वयं भी मानता हो, किन्तु जब तक स्वयं परीक्षा करके उनकी सत्यता का निश्चय नहीं कर लेता, तब तक गृहीत मिथ्यात्व नहीं छूटता। गृहीत मिथ्यात्व को छोड़े बिना जीव के धर्म समझने की पात्रता ही नहीं आती।
प्रश्न – इन दो प्रकार के मिथ्यात्व में पहले कौनसा मिथ्यात्व दूर होता है?
उत्तर – पहले गृहीत मिथ्यात्व दूर होता है। गृहीत मिथ्यात्व के दूर किये बिना किसी भी जीव के अगृहीत मिथ्यात्व दूर नहीं हो सकता। हाँ; किसी तीव्र पुरुषार्थी पुरुष के यह दोनों मिथ्यात्व एक साथ भी दूर हो जाते हैं। __जो अगृहीत मिथ्यात्व को दूर कर लेता है, उसके गृहीत मिथ्यात्व तो दूर हो ही जाता है, किन्तु गृहीत मिथ्यात्व के दूर हो जाने पर भी, अनेक जीवों के अगृहीत मिथ्यात्व दूर नहीं होता। कुगुरु, कुदेव और कुशास्त्र तथा लौकिक मूढ़ता की मान्यता का
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