Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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स्वभावानुभव की विधि ) (वीर संवत् 2473, प्रथम श्रावण कृष्ण 8, श्री समयसार कलश-109
पर पूज्य सद्गुरुदेवश्री के प्रवचन का संक्षिप्त सार) सिद्ध भगवान, ज्ञान से सब कुछ मात्र जानते ही हैं, उनके ज्ञान में न तो विकल्प होता है, न राग-द्वेष होता है और न कर्तृत्व की मान्यता होती है। इसी प्रकार समस्त आत्माओं का स्वभाव सिद्धों की ही भाँति ज्ञातृत्वभाव से मात्र जानना ही है।जो इस तत्त्व को जानता है, वह जीव अपने ज्ञानस्वभाव में उन्मुख होकर सर्व विकल्पादि का निषेध करता है। उसके ज्ञानस्वभाव में एकत्वबुद्धि प्रगट हुई है और विकल्प की एकत्वबुद्धि टूट गयी है; अब जो विकल्प आते हैं, उन सबका निषेध करता हुआ आगे बढ़ता है।साधकजीव यह जानता है कि सिद्ध का और मेरा स्वभाव समान ही है, क्योंकि सिद्धों में विकल्प नहीं हैं; अतः वे मुझमें भी नहीं हैं; इसलिए मैं अभी ही अपने स्वभाव के बल से उनका निषेध करता हूँ। मेरे ज्ञान में समस्त रागादि का निषेध ही है। जैसे सिद्ध भगवान मात्र चैतन्य हैं; उसी प्रकार मैं भी मात्र चैतन्य को ही अङ्गीकार करता हूँ।
कभी भी स्वसन्मुख होकर सर्व पुण्य-पाप, व्यवहार का निषेध करना, वही यही मोक्षमार्ग है, तब फिर अभी ही उसका निषेध क्यों न किया जाए? क्योंकि उसका निषेधरूप स्वभाव अभी ही परिपूर्ण विद्यमान है। वर्तमान में ही स्वभाव की प्रतीति करने पर पुण्य
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