Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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धर्मात्मा की स्वरूप - जागृति
I
सम्यग्दृष्टि जीव के सदा स्वरूप - जागृति रहती है सम्यग्दर्शन होने के पश्चात् चाहे जिस परिस्थिति में रहते हुए भी, उस जीव को स्वरूप की अनाकुलता का आंशिक वेदन तो हुआ ही करता है, किसी भी परिस्थिति में पर्याय की ओर का वेग ऐसा नहीं होता कि जिससे निराकुल स्वभाव के वेदन को बिलकुल ढँककर मात्र आकुलता का वेदन होता रहे । सम्यग्दृष्टि को प्रतिक्षण निराकुलस्वभाव और आकुलता के बीच भेदज्ञान रहता है और उसके फलस्वरूप वह प्रतिक्षण निराकुलस्वभाव का आंशिक वेदन करता है, ऐसा चौथे गुणस्थान में रहनेवाले धर्मात्मा का स्वरूप है। बाह्य क्रियाओं से स्वरूप - जागृति का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। शरीर से शान्त बैठा हो तो ही अनाकुलता कहलाती है और जब लड़ रहा हो, उस समय अनाकुलता किञ्चित् नहीं हो सकती - ऐसी बात नहीं है; अज्ञानी जीव बाह्य से शान्त बैठा दिखायी देता है, तथापि अन्तरङ्ग में तो वह विकार में ही लवलीन होने से एकान्त आकुलता ही भोगता है, उसे किञ्चित् स्वरूप-जागृति नहीं है और ज्ञानी जीव को युद्ध के समय भी अन्तरङ्ग मे विकारभाव के साथ तन्मयता नहीं रहती। इससे उस समय भी उसे आकुलतारहित आंशिक शान्ति का वेदन होता है इतनी स्वरूप-जागृति तो धर्मात्मा के रहती ही है। ऐसी स्वरूपजागृति ही धर्म है, दूसरा कोई धर्म नहीं।
Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.