Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन बिना सब कुछ किया ....
परन्तु उससे क्या? (आत्मानुभव प्रगट करने का उपाय बतानेवाला श्री समयसार, गाथा-142 पर एक सुन्दर व्याख्यान)
एकमात्र सम्यग्दर्शन के अतिरिक्त जीव अनन्त काल में सब कुछ कर चुका है, किन्तु सम्यग्दर्शन कभी एक क्षणमात्र भी प्रगट नहीं किया। यदि एक क्षणमात्र भी सम्यग्दर्शन प्रगट करे तो उसकी मुक्ति हुए बिना न रहे। आत्मकल्याण का उपाय क्या है सो बताते हैं। विकल्पमात्र का अवलम्बन छोड़कर, जब तक जीव शुद्धात्म स्वभाव का अनुभव न करे, तब तक उसका कल्याण नहीं होता। शुद्धात्मस्वरूप का अनुभव किये बिना जीव जो कुछ भी करता है, वह सब व्यर्थ है, उससे आत्मकल्याण नहीं होता।
कई जीव यह मानते हैं कि हमें पाँच लाख रुपया मिल जाये तो हम सुखी हो जायें; किन्तु ज्ञानी कहते हैं कि हे भाई! यदि पाँच लाख रुपया मिल गये तो उससे क्या? क्या रुपयों में आत्मा का सुख है ? रुपया तो जड़ हैं, वे कहीं आत्मा में प्रवेश नहीं कर जाते
और उनमें कहीं आत्मा का सुख नहीं है। सुख तो आत्मस्वभाव में है। उस स्वभाव का अनुभव नहीं किया तो फिर रुपया मिले इससे क्या? जबकि आत्मस्वभाव की प्रतीति नहीं है, तब रुपयों में ही सुख मानकर, रुपयों के लक्ष्य से उलटा आकुलता का ही वेदन करके दु:खी होगा।
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.