Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-1]
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जो विकार भी पर्याय में स्वतन्त्ररूप से करता है, उसमें भी अपनी पर्याय का दोष कारण है । प्रत्येक द्रव्य - गुण - पर्याय की सत्ता स्वतन्त्र है, तब फिर कर्म की सत्ता, आत्मा की सत्ता में क्या कर सकती है ? कर्म और आत्मा की सत्ता में तो प्रदेशभेद स्पष्ट है, दो वस्तुओं में सर्वथा पृथक्त्व भेद है ।
यहाँ यह बताया गया है कि एक गुण के साथ दूसरे गुण का पृथक्त्व भेद न होने पर भी, उनमें अन्यत्व भेद है; इसलिए एक गुण की सत्ता में दूसरे गुण की सत्ता नहीं है । इस प्रकार यह गाथा स्व में ही अभेदत्व और भेदत्व बतलाती है । प्रदेशभेद न होने से अभेद है और गुण - गुणी की अपेक्षा से भेद है। कोई भी दो वस्तुयें लीजिये, उन दोनों में प्रदेशत्वभेद है, किन्तु एक वस्तु में जो अनन्त गुण हैं, उन गुणों में एक दूसरे के साथ अन्यत्व भेद है, किन्तु पृथक्त्व - भेद नहीं है।
इन दो प्रकार के भेदों के स्वरूप को समझ लेने पर, अनन्त परद्रव्यों का अहंकार दूर हो जाता है और पराश्रयबुद्धि दूर होकर स्वभाव की दृढ़ता हो जाती है तथा सच्ची श्रद्धा होने पर, समस्त गुणों को स्वतन्त्र मान लिया जाता है, पश्चात् समस्त गुण शुद्ध हैं - ऐसी प्रतीतिपूर्वक, जो विकार होता है, उसका भी मात्र ज्ञाता ही रहता है, अर्थात् उस जीव को विकार और भव के नाश की प्रतीति हो गयी है। समझ का यही अपूर्व लाभ है । ज्ञेय अधिकार में द्रव्यगुण - पर्याय का वर्णन है, प्रत्येक गुण - पर्याय ज्ञेय हैं, अर्थात् अपने समस्त गुण-पर्याय का और अभेद स्वद्रव्य का ज्ञाता हो गया, , यही सम्यग्दर्शन-धर्म है।
Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.