Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-1 प्रकार दियासलाई की पेटी में अग्नि होने की शक्ति नहीं है; उसी प्रकार उन शरीरादि में केवलज्ञान होने की शक्ति नहीं है और पूजाभक्ति आदि पुण्यभाव या हिंसा-चोरी आदि पापभाव उस दियासलाई के पिछले भाग जैसे हैं। जिस प्रकार दियासलाई के पिछले भाग में अग्नि प्रगट होने की शक्ति नहीं है; उसी प्रकार उन पुण्य-पाप में सम्यग्दर्शन या केवलज्ञान होने की शक्ति नहीं है तो वह शक्ति किसमें है ? सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र और केवलज्ञान होने की शक्ति तो चैतन्यस्वभाव में है। उस स्वभाव की प्रतीति करने से सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान होता है, तत्पश्चात उसमें एकाग्रता करने पर सम्यक्चारित्र और केवलज्ञान होता है, इसके अतिरिक्त अन्य प्रकार से धर्म नहीं होता।
स्वभाव की प्रतीति न करे और पुण्य-पाप को घिसता रहे, पूजा-भक्ति-व्रत में शुभराग करता रहे तो उससे सम्यग्दर्शन धर्म नहीं होता और उपवासादि कर-करके शरीर-मन-वाणी को घिसता रहे, उसमें भी कहीं धर्म नहीं होता, परन्तु शरीर-मन-वाणी और पुण्य-पाप से रहित त्रिकाली चैतन्यरूप आत्मस्वभाव है, उसकी प्रतीति और अनुभव करे तो सम्यग्दर्शनरूप प्रथम धर्म हो और पश्चात् उसमें एकाग्रता करने से सम्यक्चारित्ररूप धर्म हो। सम्यग्दर्शन के बिना चाहे जितने शास्त्रों का अभ्यास कर ले, व्रतउपवास करे, प्रतिमाधारण करे, पूजा-भक्ति करे या द्रव्यलिङ्गी हो जाये - चाहे जितना करे, किन्तु उसे धर्म नहीं माना जाता और न वह (कर्मरूप धर्म) करते-करते धर्म होता है। सम्यग्दर्शन होने से पहले भी अरहन्त भगवान के द्रव्य-गुण-पर्याय को जाने और उनके जैसा अपना आत्मा है - ऐसा मन से निश्चित करके उसके
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