Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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(हे जीवों! मिथ्यात्व के महापाप को छोडो...!)
'मिथ्यात्व के समान अन्य कोई पाप नहीं है, मिथ्यात्व का सद्भाव रहते हुए, अन्य अनेक उपाय करने पर भी मोक्ष नहीं होता, इसलिए प्रत्येक उपायों के द्वारा सब तरह से इस मिथ्यात्व का नाश करना चाहिए।'
(-मोक्षमार्गप्रकाशक, अध्याय 7 पृष्ठ-270) 'यह जीव अनादि काल से मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप परिणमन कर रहा है और इसी परिणमन के द्वारा संसार में अनेक प्रकार के दुःख उत्पन्न करनेवाले कर्मों का सम्बन्ध होता है। यही भाव सर्वदुःखों का बीज है, अन्य कोई नहीं; इसलिए हे भव्य जीवो! यदि तुम दुःखों से मुक्त होना चाहते हो तो सम्यग्दर्शनादि के द्वारा मिथ्यादर्शनादिक विभावों का अभाव करना ही अपना कार्य है। इस कार्य को करने से, तुम्हारा परम कल्याण होगा'।
(-मोक्षमार्गप्रकाशक अध्याय 4 पृष्ठ-98) इस मोक्षमार्ग प्रकाशक में अनेक प्रकार से मिथ्यादृष्टियों के स्वरूप-निरुपण करने का हेतु यह है कि मिथ्यात्व के स्वरूप को समझकर, यदि अपने में वह महान दोष हो तो उसे दूर किया जाए। स्वयं अपने दोषों को दूर करके सम्यक्त्व ग्रहण किया जाए। यदि अन्य जीव में वह दोष हो तो उसे देखकर उन जीवों पर कषाय नहीं करना चाहिए।
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.