Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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(दर्शनाचार और चारित्राचार । वस्तु और सत्ता में कथंचित् अन्यत्व है; सम्पूर्ण वस्तु एक ही गुण के बराबर नहीं है तथा एक गुण सम्पूर्ण वस्तुरूप नहीं है। वस्तु में कथंचित् गुण-गुणी भेद है; इसलिए वस्तु का प्रत्येक गुण स्वतन्त्र हैं। श्रद्धा और चारित्रगुण भिन्न-भिन्न हैं । चारित्रगुण में कषाय मन्द होने से श्रद्धागुण में कोई लाभ होता हो, बात नहीं है क्योंकि श्रद्धागुण और चारित्रगुण में अन्यत्व-भेद है। कषाय की मन्दता करना, सो चारित्रगुण की विकारी क्रिया है। श्रद्धा और चारित्रगुण में अन्यत्वभेद है, इसलिए चारित्र के विकार की मन्दता, सम्यक्श्रद्धा का उपाय नहीं, किन्तु परिपूर्ण द्रव्यस्वभाव की रुचि करना ही श्रद्धा का कारण है।
श्रद्धागुण के सुधर जाने पर भी चारित्रगुण नहीं सुधर जाता, क्योंकि श्रद्धा और चारित्रगुण भिन्न हैं । राग के कम होने से अथवा चारित्रगुण के आचार से जो जीव, सम्यक्श्रद्धा का माप करना चाहते हैं, वे मिथ्यादृष्टि हैं, उन्हें वस्तुस्वरूप के गुण-भेद की खबर नहीं है, क्योंकि सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र के आचार भिन्नभिन्न हैं।
बहुत कषाय के होने पर भी सम्यग्दर्शन हो सकता है और एक भवावतारी हो सकता है तथा अत्यन्त मन्दकषाय होने पर भी यह हो सकता है कि सम्यग्दर्शन न हो और अनन्त संसारी हो । अज्ञानी जीव, चारित्र के विकार को मन्द करता है, किन्तु उसे श्रद्धा के
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