Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-1]
[113 समय अभेदस्वभाव की ओर झुकते हैं, उसी समय कर्ता-कर्मक्रिया का भेद टूट जाता है, तथापि यहाँ उत्तरोत्तर क्षण में क्षय होता जाता है' - ऐसा क्यों कहा है ?
अनुभव करने के समय पर्याय, द्रव्य की ओर अभिन्न हो जाती है, परन्तु अभी सर्वथा अभिन्न नहीं हुई है। यदि सर्वथा अभिन्न हो जाए तो उसी समय केवलज्ञान हो जाए, परन्तु जिस समय अभेद के अनुभव की ओर ढ़लता है, उसी क्षण से प्रत्येक पर्याय में भेद का क्रम टूटने लगता है और अभेद का क्रम बढ़ने लगता है। जब पर की ओर लक्ष्य था, तब पर के लक्ष्य से उत्तरोत्तर क्षण में भेदरूप पर्याय होती थी, अर्थात् प्रतिक्षण पर्याय हीन होती जाती थी और जब पर का लक्ष्य छोड़कर निज में अभेद के लक्ष्य से एकाग्र हो गया, तब निज लक्ष्य से उत्तरोत्तर क्षण में पर्याय अभिन्न होने लगी, अर्थात् प्रतिक्षण पर्याय की शुद्धता बढ़ने लगी। ___ जहाँ सम्यग्दर्शन हुआ कि क्रमशः प्रत्येक पर्याय में शुद्धता की वृद्धि होकर केवलज्ञान ही होता है। बीच में शिथिलता या विघ्न नहीं आ सकता। सम्यक्त्व हुआ सो हुआ; अब उत्तरोत्तर क्षण में द्रव्य-पर्याय के बीच के भेद को सर्वथा तोड़कर केवलज्ञान को प्राप्त किए बिना नहीं रुकता। ज्ञानरूपी अवस्था के कार्य में अनन्त केवलज्ञानियों का निर्णय समा जाता है, प्रत्येक पर्याय की ऐसी शक्ति है। जिस ज्ञान की पर्याय ने अरहन्त का निर्णय किया, उस ज्ञान में अपना निर्णय करने की शक्ति है। पर्याय की शक्ति चाहे जितनी हो, तथापि वह पर्याय क्षणिक है। एक के बाद एक अवस्था का लक्ष्य करने पर, उसमें भेद का विकल्प उठता है, क्योंकि अवस्था में खण्ड है; इसलिए उसके लक्ष्य से खण्ड का विकल्प
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