Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
अरे भव्य! तू तत्त्व की कौतूहली होकर
आत्मा का अनुभव कर
अयि कथमपि मृत्वा तत्वकौतूहली सन्, अनुभव भवमूर्तेः पार्श्ववर्ती मुहूर्त्तम्। पृथगथ विलसन्तं स्वं समालोक्य येन, त्वजसि झगिति मूर्त्या साकमेकत्वमोहम्॥
(-श्री समयसार कलश-23) श्री आचार्यदेव कोमल सम्बोधन से कहते हैं कि हे भाई! तू किसी भी प्रकार महाकष्ट से अथवा मरकर भी तत्त्व का कौतूहली होकर, इन शरीरादि मूर्त द्रव्यों का एक मुहूर्त (दो घड़ी) पड़ोसी होकर आत्मा का अनुभव कर, कि जिससे अपने आत्मा को विलासरूप सर्व परद्रव्यों से पृथक् देखकर इन शरीरादि मूर्तिक पुद्गलद्रव्यों के साथ एकत्व के मोह को तू तुरन्त ही छोड़ देगा।
मिथ्यादृष्टि के मिथ्यात्व का नाश कैसे हो? तथा अनादि कालीन विपरीतमान्यता और पाप कैसे दूर हों? उसका उपाय बतलाते हैं। आचार्यदेव तीव्र सम्बोधन करके नहीं कहते हैं, किन्तु कोमल सम्बोधन करके कहते हैं कि हे भाई! यह क्या तुझे शोभा देता है? कोमल सम्बोधन करके जागृत करते हैं कि तू किसी भी प्रकार महाकष्ट से अथवा मरकर भी-मरण जितने कष्ट आयें तो भी, वह सब सहन करके, तत्त्व का कौतूहली हो। जिस प्रकार कुएं में कुश (डुबकी) मारकर ताग लाते हैं; उसी
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.