Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-1]
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द्रव्य, गुण में कोई अन्तर नहीं है; अवस्था में संसार और मोक्ष है। द्रव्य-गुण में से पर्याय प्रगट होती है, इसलिए अपने द्रव्य-गुण को पहिचानकर, उस द्रव्य-गुण में पर्याय का जैसा-आकार-प्रकार स्वयं बनाना है, वैस ही कर सकता है। __इस प्रकार द्रव्यरूप से और गुणरूप से आत्मा की पहिचान करायी है, इसमें जो गुण है, वह द्रव्य की पहिचान करानेवाला है।
-पर्याय'अन्वय के व्यतिरके को पर्याय कहते हैं'- इनमें पर्यायों की परिभाषा बतायी है। द्रव्य के जो भेद हैं, सो पर्याय हैं । द्रव्य तो त्रिकाल है, उस द्रव्य को क्षण-क्षण के भेद से (क्षणवर्ती अवस्था से) लक्ष्य में लेना, सो पर्याय है। पर्याय का स्वभाव व्यतिरेकरूप है, अर्थात् एक पर्याय के समय दूसर पर्याय नहीं होती। गुण और द्रव्य सदा एक साथ होते हैं, किन्तु पर्याय एक के बाद दूसरी होती है। अरहन्त भगवान के केवलज्ञानपर्याय है,तब उनके पूर्व की अपूर्ण ज्ञानदशा नहीं होती। वस्तु के जो एक-एक समय के भिन्नभिन्न भेद हैं, सो पर्याय है। कोई भी वस्तु, पर्याय के बिना नहीं हो सकती।
आत्मद्रव्य स्थिर रहता है और उसकी पर्याय बदलती रहती है। द्रव्य और गुण एकरूप हैं, उनमें भेद नहीं है, किन्तु पर्याय में अनेक-प्रकार से परिवर्तन होता है; इसलिए पर्याय में भेद है। पहले द्रव्य-गुण-पर्याय का स्वरूप भिन्न-भिन्न बताकर, फिर तीनों का अभेद द्रव्य में समाविष्ट कर दिया है। इस प्रकार द्रव्यगुण-पर्याय की परिभाषा पूर्ण हुई।
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