Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
[97
सम्यग्दर्शन : भाग-1] पर्याय के रूप में पृथक्त्व है, किन्तु जो सोना, अंगूठी के रूप में था, वही सोना कुण्डल के रूप में है और जो कुण्डल के रूप में था, वही कड़े के रूप में है – सभी प्रकारों में सोना तो एक ही है। किस आकार-प्रकार में सोना नहीं है ? सभी अवस्थाओं के समय सोना है। इसी प्रकार अज्ञानदशा के समय साधकदशा नहीं होती, साधकदशा के समय साध्यदशा नहीं होती – इस प्रकार प्रत्येक पर्याय का पृथक्त्व है, किन्तु जो आत्मा अज्ञानदशा में था, वही साधकदशा में है और जो साधकदशा में था, वही साध्यदशा में है। सभी अवस्थाओं में आत्मद्रव्य तो एक ही है। किस अवस्था में आत्मा नहीं है? सभी अवस्थाओं में निरन्तर साथ रहकर गमन करनेवाला आत्मद्रव्य है।
पहले और पश्चात् जो स्थिर रहता है, वह द्रव्य है। अरहन्त भगवान का आत्मा स्वयं ही पहले अज्ञानदशा में था और अब वही सम्पूर्ण ज्ञानमय अरहन्तदशा में भी है। इस प्रकार अरहन्त के आत्मद्रव्य को पहचानना चाहिए। यह पहचान करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि अभी अपूर्णदशा होने पर भी, मैं पूर्ण अरहन्तदशा में भी स्थिर होऊँगा, इससे आत्मा की त्रैकालिकता लक्ष्य में आती है।
-गुण'अन्वय का जो विशेषण है, सो गुण है,' पहले द्रव्य की व्याख्या (परिभाषा) की; अब गुण की परिभाषा करते हैं । कड़ा, कुण्डल और अंगूठी इत्यादि सभी अवस्थाओं में रहनेवाला सोना, द्रव्य है – यह तो कहा है, परन्तु यह भी जान लेना चाहिए कि सोना कैसा है ? सोना पीला है, भारी है, चिकना है – इस प्रकार पीलापन, भारीपन, और चिकनापन, यह विशेषण सोने के लिए
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.