Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
सम्यग्दर्शन : भाग-1]
[69 'जो जानता है' – इसमें जाननेवाली तो वर्तमान पर्याय है। निर्णय करनेवाले ने अपनी ज्ञानपर्याय में पूर्ण द्रव्य-गुण-पर्याय का
अस्तिरूप में निर्णय किया है और विकार का निषेध किया है, ऐसा निर्णय करनेवाले की, पूर्ण पर्याय किसी पर के कारण से कदापि नहीं हो सकती, क्योंकि उसने अरहन्त के समान अपने पूर्ण स्वभाव का निर्णय कर लिया है। जिसने पूर्ण स्वभाव का निर्णय कर लिया है, उसने क्षेत्र, कर्म अथवा काल के कारण मेरी पर्याय रुक जायेगी - ऐसी पुरुषार्थहीनता की बात को उड़ा दिया है। द्रव्य-गुणपर्याय से पूर्ण स्वभाव का निर्णय करने के बाद पूर्ण पुरुषार्थ करना ही शेष रह जाता है, कहीं भी रुकने की बात नहीं रहती। यह मोहक्षय के उपाय की बात है। जिसने अपने ज्ञान में अरहन्त के द्रव्य-गुण-पर्याय को जाना है, उसके ज्ञान में केवलज्ञान का हार गुंफित होगा, उसकी पर्याय, केवलज्ञान की ओर की ही होगी।
जिसने अपनी पर्याय में अरहन्त के द्रव्य-गुण-पर्याय को जाना है, उसने अपने आत्मा को ही जान लिया है, उसका मोह अवश्य क्षय को प्राप्त होता है, यह बात कितनी विशिष्टता के साथ कही है। वर्तमान में इस क्षेत्र में क्षायिकसम्यक्त्व नहीं है, तथापि 'मोहक्षय को प्राप्त होता है' – यह कहने में अन्तरङ्ग का इतना बल है कि जिसने इस बात का निर्णय किया, उसे वर्तमान में भले ही क्षायिकसम्यक्त्व न हो, तथापि उसका सम्यक्त्व इतना प्रबल और अप्रतिहृत है कि उसमें क्षायिकदशा प्राप्त होने तक बीच में कोई भङ्ग नहीं पड़ सकता। सर्वज्ञ भगवान का आश्रय लेकर भगवान कुन्दकुन्दाचार्यदेव कहते हैं कि जो जीव, द्रव्य-गुण-पर्याय के द्वारा अरहन्त के स्वरूप का निर्णय करता है, वह अपने आत्मा को
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.