Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-1]
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तो ऐसा कहनेवाले की बात मिथ्या है। भगवान ने तो पुरुषार्थ का ही उपदेश दिया है। भगवान के केवलज्ञान का निर्णय भी पुरुषार्थ के द्वारा ही होता है। जो जीव, भगवान के कहे हुए मोक्षमार्ग का पुरुषार्थ करता है, उसे अन्य सर्वसाधन स्वयं प्राप्त हो जाते हैं ।
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अब 80-81-82 इन तीन गाथाओं में बहुत सुन्दर बात आती है। जैसे माता अपने इकलौते पुत्र को हृदय का हार कहती है; उसी प्रकार ये तीनों गाथायें हृदय का हार हैं । यह मोक्ष की माला के गुंफित मोती हैं। ये तीनों गाथायें तो तीन रत्न (श्रद्धा-ज्ञान-चारित्र) के सदृश हैं। उनमें पहली 80वीं गाथा में मोह के क्षय करने का उपाय बतलाते हैं—
जो जाणदि अरहन्त दव्वत्त- गुणत्त - पज्जयत्तेहिं । सो जाणदि अप्पाणं मोहो खलु जादि तस्स लयं ॥ 80 ॥ जो जानता अरिहन्त को, नित द्रव्य-गुण- पर्याय से । वह जानता निज-आत्मा को, अरु करे मोह-क्षय नियम से ॥ 80 ॥
अर्थ – जो अरहन्त को द्रव्यरूप से, गुणरूप से और पर्यायरूप से जानता है, वह (अपने) आत्मा को जानता है और उसका मोह अवश्य नाश को प्राप्त होता है ।
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इस गाथा में मोह की सेना को जीतने के पुरुषार्थ का विचार करते हैं । जहाँ मोह के जीतने का पुरुषार्थ किया, वहाँ अरहन्तादि निमित्त उपस्थित होते ही हैं । जहाँ उपादान जागृत हुआ, वहाँ निमित्त तो होता ही है । काल आदि निमित्त तो सर्व जीव के सदा उपस्थित रहते हैं, जीव स्वयं जिस प्रकार का पुरुषार्थ करता है, उसमें काल को निमित्त कहा जाता है । जब कोई जीव, शुभभाव
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