Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-1 निश्चय करने की शक्ति विकल्प में नहीं, किन्तु स्वभाव की ओर के ज्ञान में है। अरहन्त भगवान आत्मा हैं। अरहन्त भगवान के द्रव्य-गुण -पर्याय और इस आत्मा के द्रव्य-गुण-पर्याय में निश्चय से कोई अन्तर नहीं है और द्रव्य-गुण-पर्याय से अरहन्त का स्वरूप स्पष्ट है – परिपूर्ण है, इसलिए जो जीव, द्रव्य-गुणपर्याय से अरहन्त को जानता है, वह जीव, आत्मा को ही जानता है और आत्मा को जानने पर, उसका दर्शनमोह अवश्य क्षय को प्राप्त होता है। यदि देव, गुरु के स्वरूप को यथार्थतया जाने तो जीव के मिथ्यात्व कदापि न रहे । इस सम्बन्ध में मोक्षमार्गप्रकाशक में कहा है कि मिथ्यादृष्टि, जीव-जीव के विशेषणों को यथावत् जानकर बाह्य विशेषणों से अरहन्तदेव के माहात्म्य को मात्र आज्ञानुसार मानता है अथवा अन्यथा भी मानता है, यदि कोई जीव के (अरहन्त के) यथावत् विशेषणों को जान ले तो वह मिथ्यादृष्टि न रहे। (-सस्ती ग्रन्थमाला देहली से प्रकाशित मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ 325)
इसी प्रकार गुरु के स्वरूप सम्बन्ध में कहते हैं :- सम्यग्दर्शन -ज्ञान-चारित्र की एकतारूप मोक्षमार्ग ही मुनि का यथार्थ लक्षण है, उसे नहीं पहचानता। यदि उसे पहचान ले तो वह मिथ्यादृष्टि कदापि न रहे।
(-मोक्षमार्गप्रकाशक 328) इसी प्रकार शास्त्र के स्वरूप के सम्बन्ध में कहते हैं – यहाँ तो अनेकान्तरूप सच्चे जीवादि तत्त्वों का निरूपण है तथा सच्चा रत्नत्रय मोक्षमार्ग बताया है; इसलिए यह जैन शास्त्रों की उत्कृष्टता है, जिसे वह नहीं जानता। यदि इसे पहचान ले तो वह मिथ्यादृष्टि न रहे।
(-मोक्षमार्गप्रकाशक पृ. 329)
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