Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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हे जीवो! सम्यक्त्व की आराधना करो
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जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष - इन सात तत्त्वों का यथावत् निश्चय, आत्मा में उनका वास्तविक प्रतिभास ही सम्यग्दर्शन है। पण्डित और बुद्धिमान मुमुक्षु को मोक्षस्वरूप परम सुखस्थान में निर्विघ्न पहुँचाने में यह पहली सीढ़ीरूप है। ज्ञान, चारित्र और तप – ये तीनों सम्यक्त्वसहित हों, तभी मोक्षार्थ से सफल हैं, वन्दनीय हैं, कार्यगत हैं; अन्यथा वही (ज्ञान, चारित्र और तप) संसार के कारणरूप से ही परिणमित होते रहते हैं। संक्षेप में सम्यक्त्वरहित ज्ञान ही अज्ञान है; सम्यक्त्वरहित चारित्र ही कषाय; और सम्यक्त्वरहित तप ही कायक्लेश है। ज्ञान, चारित्र और तप –इन तीनों गुणों को उज्ज्वल करनेवाली – ऐसी यह सम्यक्श्रद्धा प्रथम आराधना है, शेष तीन आराधनायें एक सम्यक्त्व की विद्यमानता में ही आराधकभावरूप वर्तती हैं। इस प्रकार सम्यक्त्व की अकथ्य और अपूर्व महिमा जानकर, उस पवित्र कल्याणमूर्तिरूप सम्यग्दर्शन को, इस अनन्तानन्त दुःखरूप अनादि संसार की आत्यंतिक निवृत्ति के अर्थ, हे भव्यों ! तुम भक्ति-भावपूर्वक अङ्गीकार करो, प्रति समय आराधना करो । ( - श्री आत्मानुशासन पृष्ठ 9 )
चार आराधनाओं में सम्यक्त्व आराधना को प्रथम कहने का क्या कारण है ? ऐसा प्रश्न शिष्य को होने पर आचार्यदेव उसका समाधान करते हैं
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Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.