Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-1]
[59 मिथ्यादर्शन (मिथ्याश्रद्धा) दोनों उसकी पर्याय हैं। सम्यग्दर्शन शुद्ध पर्याय है और मिथ्यादर्शन अशुद्ध पर्याय है।
प्रश्न – यदि सम्यग्दर्शन को पर्याय माना जाये तो उसकी महिमा समाप्त हो जायेगी; क्योंकि पर्याय तो क्षणिक होती है और पर्यायदृष्टि को शास्त्र में मिथ्यात्व कहा है।
उत्तर – सम्यग्दर्शन को पर्याय मानने से उसकी महिमा में कोई कमी नहीं आ सकती। केवलज्ञान भी पर्याय है और सिद्धत्व भी पर्याय है। जो जैसी है, वैसी ही पर्याय को पर्यायरूप में जानने से उसकी यथार्थ महिमा बढ़ती है। यद्यपि सम्यग्दर्शन पर्याय क्षणिक है; किन्तु उस सम्यग्दर्शन का कार्य क्या है ? सम्यग्दर्शन का कार्य अखण्ड त्रैकालिक द्रव्य की प्रतीति करता है और वह पर्याय त्रैकालिक द्रव्य के साथ एकाकार होती है; इसलिए उसकी अपार महिमा है। इस प्रकार सम्यग्दर्शन को पर्याय मानने से उसकी महिमा समाप्त नहीं हो जाती। किसी वस्तु के काल को लेकर उसकी महिमा नहीं है, किन्तु उसके भाव को लेकर उसकी महिमा है और फिर यह भी सच ही है कि पर्यायदृष्टि को शास्त्र में मिथ्यात्व कहा है परन्तु साथ ही यह जान लेना चाहिए कि पर्यायदृष्टि का अर्थ क्या है ? सम्यग्दर्शन पर्याय है और पर्याय को पर्याय के रूप में जानना, पर्यायदृष्टि नहीं है। द्रव्य को द्रव्य के रूप में और पर्याय को पर्याय के रूप में जानना, सम्यग्ज्ञान का काम है। यदि पर्याय को ही द्रव्य मान ले अर्थात् एक पर्याय जितना ही समस्त द्रव्य को मान ले तो उस पर्याय के लक्ष्य में ही अटक जाएगा - पर्याय के लक्ष्य से हटकर द्रव्य का लक्ष्य नहीं कर सकेगा; इसका नाम पर्यायदृष्टि है। सम्यग्दर्शन को पर्याय के रूप में जानना चाहिए।
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