Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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( धर्म का मूल सम्यग्दर्शन है ) अज्ञानियों की यह मिथ्या मान्यता है कि शुभभाव, धर्म का कारण है परन्तु शुभभाव तो विकार है, वह धर्म का कारण नहीं, सम्यग्दर्शन स्वयं धर्म है और वही धर्म का मूलकारण है। __ अज्ञानी का शुभभाव, अशुभ की सीढ़ी है और ज्ञानी के शुभ का अभाव, शुद्धता की सीढ़ी है। अशुभ से सीधा शुद्धभाव किसी भी जीव के नहीं हो सकता; किन्तु अशुभ को छोड़कर पहले शुभभाव होता है और उस शुभ को छोड़कर शुद्ध में जाया जाता है; इसलिए शुद्धभाव से पूर्व शुभभाव का ही अस्तित्व होता है। ऐसा ज्ञान मात्र कराने के लिये शास्त्र में शुभभाव को शुद्धभाव का कारण उपचार से ही कहा है; किन्तु यदि शुभभाव को शुद्धभाव का कारण वास्तव में माना जाए तो उस जीव को शुभभाव की रुचि है; इसलिए उसका वह शुभभाव, पाप का ही मूल कहलायेगा। जो जीव, शुभभाव से धर्म मानकर, शुभभाव करता है, उस जीव को उस शुभभाव के समय ही मिथ्यात्व के सबसे बड़े महापाप का बन्ध होता है, अर्थात् उसे मुख्यतया तो अशुभ का ही बन्ध होता है
और ज्ञानी जीव यह जानता है कि इस शुभ का अभाव करने से ही शुद्धता होती है; इसलिए उनके कदापि शुभ की रुचि नहीं होती, अर्थात् वे अल्प काल में शुभ का भी अभाव करके शुद्धभावरूप हो जाते हैं।
मिथ्यादृष्टि जीव, पुण्य की रुचिसहित शुभभाव करके नववें
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