Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-1 की आकुलता के अतिरिक्त दूसरा कुछ भी जानेवाला नहीं है। किसी भी जीव के साथ परवस्तुएँ नहीं जाती; मात्र अपना भाव ही साथ ले जाता है। इसलिए आचार्यदेव कहते हैं कि चेतना के द्वारा आत्मा का ग्रहण करना चाहिए। जिस चेतना के द्वारा आत्मा का ग्रहण किया है, वह सदा आत्मा में ही है। जिसने चेतना के द्वारा शुद्ध आत्मा को जान लिया है, वह कभी भी परपदार्थ का या परभावों को आत्मस्वभाव के रूप में ग्रहण नहीं करता, किन्तु शुद्धात्मा को ही अपने रूप में जानकर उसका ग्रहण करता है। इसलिए वह सदा अपने आत्मा में ही है। ___ यदि कोई पूछे कि भगवान कुन्दकुन्दाचार्यदेव कहाँ हैं ? तो ज्ञानी उत्तर देता है, कि वास्तव में कुन्दकुन्दाचार्य आदि स्वर्गादिक बाह्य क्षेत्रों में नहीं; किन्तु अपने आत्मा में ही हैं। जिसने कभी किसी परपदार्थ को अपना नहीं माना और एक चेतना स्वभाव को ही निजस्वरूप से अङ्गीकार किया है, वह चेतनास्वभाव के अतिरिक्त अन्यत्र कहाँ जायेगा? जिसने चेतना के द्वारा अपना आत्मा ग्रहण किया है, वह सदा अपने आत्मा में ही टिका रहता है। जिसमें जिसकी दृष्टि पड़ी है, उसमें वह सदा बना रहता है। ___ वास्तव में कोई भी जीव अपनी चैतन्य भूमिका से बाहर नहीं रहता, किन्तु अपनी चैतन्य भूमिका में जैसे भाव करता है, वैसे ही भावों में रहता है। ज्ञानी, ज्ञानभाव में और अज्ञानी, अज्ञानभाव में रहता है। बाहर से चाहे जो क्षेत्र हो, किन्तु जीव अपनी चैतन्य भूमिका में जो भाव करता है, उसी भाव को वह भोगता है, बाह्य संयोग को नहीं भोगता।
(- श्री समयप्राभृत गाथा 297 के व्याख्यान से)
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