Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-1 अज्ञान है। जिसका वजन ज्ञान की ओर जाता है, वह राग को निःशंकरूप से जानता है, किन्तु उसे ज्ञानस्वभाव में कोई शङ्का नहीं होती और जिसका वजन ज्ञान की ओर नहीं है, उसे राग को जानने पर भ्रम हो जाता है कि यह राग क्यों? वजन राग के समय राग से भिन्न ज्ञानस्वरूप है, वह उसे भासित नहीं होता, किन्तु भाई! तेरी दृष्टि ज्ञान से हटकर राग पर क्यों जाती है? जो यह राग ज्ञात होता है, वह तो ज्ञान की जानने की जो शक्ति विकसित हुई है, वही ज्ञात होती है। इस प्रकार ज्ञान और राग को पृथक् पहिचानकर, अपने ज्ञानस्वभाव के सन्मुख हो, यही मुक्ति का उपाय है। ज्ञान पर जोर देने से ज्ञान सम्पूर्ण विकसित हो जाएगा और राग सर्वथा नष्ट हो जाएगा, जिससे मुक्ति होगी भेदज्ञान का ही यह फल है।
राग के समय जिसने यह जाना कि 'जो यह राग ज्ञात होता है, वह मेरे ज्ञान की सामर्थ्य है, किन्तु राग की सामर्थ्य नहीं है', इस प्रकार जिसने राग से भिन्नरूप ज्ञान सामर्थ्य की प्रतीति कर ली है, उसके मात्र ज्ञातृत्व रह गया है और ज्ञातृत्व के बल से समस्त विकार का कर्तत्वभाव उड़ा दिया है, वह धर्म है। ज्ञान की सामर्थ्य; चारित्र का साधन :___ यदि कोई ऐसा माने कि महाव्रत के शुभविकल्प से चारित्रदशा प्रगट होती है तो वह मिथ्यादृष्टि है क्योंकि व्रत का विकल्प तो राग है, इसलिए बन्ध का लक्षण है और चारित्र, वह तो आत्मा है। जो शुभराग को चारित्र का साधन मानता है, वह बन्ध को और आत्मा को एक मानता है किन्तु उन्हें पृथक् नहीं समझता; इसलिए वह मिथ्यादृष्टि है, वह रागरहित आत्मा को ज्ञान -शक्ति को नहीं पहिचानता। जब व्रत का शुभविकल्प उठा, तब उस समय आत्मा के ज्ञान की पर्याय की शक्ति ही ऐसी
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