Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-1]
[37 विकसित हुई कि वह ज्ञान, आत्मा के स्वभाव को भी जानता है
और विकल्प को भी जानता है। उस पर्याय में विकल्प का ही ज्ञान होता है, दूसरा होता ही नहीं, परन्तु वहाँ जो विकल्प है, वह चारित्र का साधन नहीं, किन्तु जो ज्ञानशक्ति विकसित हुई है, वह ज्ञान ही स्वयं चारित्र का साधन है। तेरी ज्ञायकपर्याय ही तेरी शुद्धता का साधन है और जो व्रत का राग है, वह वह तेरी ज्ञायकपर्याय का उस समय का ज्ञेय है।
यह बात नहीं है कि महाव्रत का विकल्प उठा है; इसलिए चारित्र प्रगट हुआ है, परन्तु ज्ञान उस वृत्ति को और स्वभाव को दोनों को भिन्न जानकर, स्वभाव की ओर उन्मुख हुआ है; इसलिए चारित्र प्रगट हुआ है। वृत्ति तो बन्धभाव है और मैं ज्ञायक हूँ, इस प्रकार ज्ञायकभाव की दृढ़ता के बल से वृत्ति को तोड़कर ज्ञान अपने स्वभाव में लीन होता है और क्षपकश्रेणी माँडकर केवलज्ञान और मोक्ष को प्राप्त करता है। इसलिए भगवती प्रज्ञारूपी छैनी ही मोक्ष का साधन है। विकार का नाशक है ज्ञान :___ ज्ञान में विकार ज्ञात होता है, वह तो ज्ञान की पर्याय की सामर्थ्य ही ऐसी विकसित हई है – ऐसा कहकर ज्ञान और विकार के बीच भेद किया है। उसके बदले कोई यह मान बैठे कि – 'भले विकार हुआ करे, आखिर वह है तो ज्ञान का ज्ञेय ही न?' तो समझना चाहिए कि वह ज्ञान के स्वरूप को ही नहीं जानता। भाई ! जिसके पुरुषार्थ का प्रवाह ज्ञान के प्रति बह रहा है, उसके पुरुषार्थ
का प्रवाह विकार की ओर से रुक जाता है और उसके प्रतिक्षण विकार का नाश होता रहता है। साधकदशा में जो-जो विकारभाव उत्पन्न होते हैं, वे ज्ञान में ज्ञात होकर छूट जाते हैं – परन्तु रहते
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