Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-1 छह-छह महीने का तप करके मर जाए तो भी आत्मप्रतीति के बिना उसका एक भी भव कम नहीं होगा, क्योंकि उसे आत्मा और राग के एकत्व का व्यामोह है और वह व्यामोह ही संसार का मूल है। अज्ञान को दूर करने का उपाय :___यहाँ शिष्य पूछता है कि अज्ञानी का वह व्यामोह किसी प्रकार से मिटाया भी जा सकता है या नहीं? उत्तर में आचार्यदेव कहते हैं कि हाँ; प्रज्ञारूपी छैनी के द्वारा उसे अवश्य छेदा जा सकता है। जैसे अन्धकार को दूर करने का उपाय प्रकाश ही है; उसी प्रकार अज्ञान को दूर करने का उपाय सम्यग्ज्ञान ही है।
यहाँ व्यामोह का अर्थ अज्ञान है और प्रज्ञारूपी छैनी का अर्थ सम्यग्ज्ञान है । हजारों उपवास करना अथवा लाखों रुपयों का दान करना इत्यादि कोई भी उपाय, आत्मासम्बन्धी अज्ञान को दूर करने के लिए नहीं है, किन्तु आत्मा और राग की भिन्नता का सम्यग्ज्ञान ही व्यामोह को छेदने का एकमात्र उपाय है। इसी उपाय से व्यामोह को छेदकर आत्मा, मुक्तिमार्ग में प्रयाण करता है – ऐसा ज्ञानी जानते हैं।
राग और ज्ञान की सन्धि के बीच प्रज्ञारूपी छैनी की चोट कैसे पड़े ? अर्थात् सम्यग्ज्ञान कैसे प्रगट हो? ज्ञान के लिए किसी न किसी अन्य साधन की आवश्यकता तो होती ही है ? इसके समाधानार्थ कहते हैं कि नहीं, ज्ञान का उपाय ज्ञान ही होगी न। ज्ञान का अभ्यास ही प्रज्ञारूपी छैनी को प्रगट करने का कारण है। भक्ति, पूजा, व्रत, उपवास, त्याग इत्यादि का शुभराग, प्रज्ञा का उपाय नहीं है; स्वभाव की
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