Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
सम्यग्दर्शन : भाग-1]
[43 जितना, उल्टा-टेढ़ा करता रहे और यह माने कि मैंने बहुत कुछ किया है; परन्तु ज्ञानी कहते हैं कि भाई ! तूने कुछ नहीं किया, तू संसार में ही स्थित है, तू किञ्चित्मात्र भी आगे नहीं बढ़ा सका। तूने अपने निर्विकार ज्ञानस्वरूप को नहीं जाना; इसलिए तू अपनी गाड़ी दौड़ाकर अधिक से अधिक अशुभ में से खींचकर शुभ में ले जाता है और उसी को धर्म मान लेता है, परन्तु इससे तो तू घूम-घामकर पुन: वहीं का वहीं विकार में ही खड़ा रहा है। विकार-चक्र में चक्कर लगाया परन्तु विकार से छूटकर ज्ञान में नहीं आया तो तूने क्या किया? कुछ भी नहीं।
ज्ञान के बिना चाहे जितना राग कम करे अथवा त्याग करें, किन्तु यथार्थ समझ के बिना उसे सम्यग्दर्शन नहीं होगा और वह मुक्तिमार्ग की ओर कदापि नहीं जा सकेगा परन्तु वह विकार और जड़ की क्रिया में कर्तृत्व का अहंकार करके तत्त्व की विराधना से संसारमार्ग में और दुर्गति में फँसता चला जाएगा। यथार्थ ज्ञान के बिना किसी भी प्रकार आत्मा की मुक्तदशा का मार्ग हाथ नहीं
आता। जिन्होंने आत्मभान किया है, वे त्याग अथवा व्रत किए बिना भी एकावतारी हो गए, जैसे कि राजा श्रेणिक। संसार का मूल :___ आत्मा के स्वभाव का मार्ग सरल होने पर भी समझमें क्यों नहीं आता? इसका कारण यह है कि अज्ञानी को अनादि काल से आत्मा और राग के एकत्व का व्यामोह, भ्रम है, पागलपन है। जिसे अन्तरङ्ग में रागरहित स्वभाव की दृष्टि का बल प्राप्त है, वह आत्मानुभव की यथार्थ प्रतीति के कारण एक-दो भव में मोक्ष जाएगा और जिसे आत्मा की सच्ची प्रतीति नहीं है, ऐसा अज्ञानी
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.